पृष्ठ:रसकलस.djvu/३७५

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रसकलस १२६ बिकत बिपुल-आकुल रहत वहकत बनत अयान । बसी-तानन कान सुनि नयन निरखि मुसुकान ॥ १०॥ लौटावत लूटी परी लौटि लपेटे भाग। लटपटात लोयन गये वधे लटपटी पाग ॥ ११ ॥ बरवा- झलही मोर ननदिया वरवस आय । बोलति वोल बिरहिया जिउ जरि जाय ।।१२।। खान पान सुधि भूलि गयहु अपान । टप टप टपकत असुआ दोउ अखियान ॥१३॥ विसरति नाहिं सनेहिया तजत न आन । जल बिन तलफि मछरिया त्यागत प्रान ।।१४।। बढ़ति जाति विकलैया निसि न सिराति । दिन दिन सजनी देहिया छीजति जाति ॥१५१ परकीया के भेद परकोया नायिका के दो भेद हैं-ऊढा और अनूढा । इन दोनों के भी दो-दो मेद हैं-उबुद्धा और उद्बोषिता । ऊढ़ा जो विवाहिता स्त्री गुप्त रीति से दूसरे से प्रीति करती है उसे अढ़ा कहते हैं। उदाहरण कवित्त- विलोकेह विपुल बिहाल ना गहें विगम वान सखियान की परी है वरजन की। तोखें ना तनिक तात तमकि तनेने हॉहि वात हित नात की है कॉत तरजन की।