पृष्ठ:रसकलस.djvu/३८३

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रसकलस १३६ गरबीली - गोरटी लजीली - अखियान-वारी लूटी सी फिरति छूटी सखिान-सग ते । कुज-पुंज क्यों हूँ लखि पाई गुज माल वारो जाकी सुघराई है सवाई सौ अनग ते । 'हरिऔध' हेरे भई वेसुध बिकी सी बाल भाव - भगी है गई छगूनी भग-रंग ते । तरकत मैन की तरंग ते तनी के बंद भरकत अग अग आनॅद-उमग ते ।।२।। सामान्या अथवा गणिका केवल धन के निमित्त प्रेम करनेवाली स्त्री सामान्या कहलाती है। इसमें प्रवचना को मात्रा अधिक होती है। उदाहरण कवित्त- a मद मद मीठे वैन बोलि मन और करे नैन - सैन ही सो मैन जू को उरथान है। पीनता दिखावै हाव - भाव परिपाटी मॉहिं रमन-प्रनाली में प्रवीनता प्रमान 'हरिऔध' सुधा ही सी सवत कहै जो कयौं प्रानप्यारे मोको मजु माल - मुकतान दे। मान दै दै सहित सनह अपनाय प्रान हरति अपान हूँ को हँसि करपान ॥१,