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पृष्ठ:रसकलस.djvu/३८४

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१३७ नायिका के भेद -- दशविध नायिका अवस्था के अनुसार नायिकाओं के दश मेद होते हैं। वे ये हैं- १-प्रोषितपतिका, २-खडिता. ३-कलहान्तरिता, ४-विप्रलब्धा ५-उत्कठिता, ६-वासकसजा, ७-स्वाधीनपतिका, ८-अभिसारिका, है-प्रवत्स्यत्पतिका १०-आगतपतिका। प्रेम-पथ पर दृष्टि रखकर ये भेद स्वकीया और परकीया में ही माने गये हैं। कुछ लोगों ने गणिका में भी इन दशाओं को माना है; किन्तु कतिपय विद्वानों के सिद्धांतानुसार मैं भी इसको रसाभास समझता हूँ। प्रोषितपतिका प्रियतम के विदेश-गमन से व्यथित और दुःखदग्ध स्त्री को प्रोषितपतिका कहते हैं। उदाहरण मुग्धा प्रोषितपतिका दोहा- सखियन हूँ ते नहिं कहति पिय-प्रवास की पीर । नीरज-नयनी-नयन हूँ नॉहिं बिमोचत नीर ॥ १॥ कोऊ बतरावत नहीं क्यों चित होत अचेत । पिय बिन ए कारे जलद क्यों जिय जारे देत ॥२॥ मध्या प्रोषितपतिका दोहा- विरह-घरी बीतति नहीं युग सम दिवस सिराहि । सखियन को लखि कै रुकत अँखियन को जल नॉहिं ॥१॥ असन-वसन की सुधि नहीं साँसत सहत सरीर । कहति न बिरह - भरे बयन बहत नयन ते नीर ।। २ ।।