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पृष्ठ:रसकलस.djvu/३८८

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१४१ नायिका के भेद मुग्धा दोहा- चकित भई अवलोकि कै उलटे पलटे बेख । मन - रंजन के अधर पै निरखे अंजन- रेख ॥१॥ लाल भोर आये कळू बोल न पाई बाल | गुनन लगी कारन निरखि उर की बिन-गुन माल ॥२॥ मध्या ऋवित्त- बोलत बनै न बारि बहै बड़ी ऑखिन सों विफल बनी है देखि बेख बल-भैया को। लाली लखि नैनन की रिस सों भई है लाल भूल्यो सब ख्याल अंक निरखि सुगैया को । 'हरिऔध' हरे हरे आखर हिये के कढ़ि आवत अधर पैन पावत समैया को। मदन - मजेज मै बिहाल बावरी सी बनी वदन बिलौकै बैठी सेज पै कन्हैया को ।।१।। दोहा- अधर लगो अंजन निरखि चितवति हग भरि लेति । उससि कछू चाहति कहन लाज कहन नहिं देति ।।२।। प्रौढ़ा क्रवित्त- मेरे भाग जागत ही जामिनी वितैबो हुतो कौन काज आप हैं लखात अलसाने से। 'यारी पीक लीकहिं अनूठे अधरान छोरि कहा लाभ कलित-कपोल पै लगाने से ।