पृष्ठ:रसकलस.djvu/३९२

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नायिका के भेद परकीया कवित्त- सीतल सलिल - वारे सर सरसावे नाहि कुंत लौं लगे है कुंज-पुंज गरवीली को । सुललित - फूलन सों सूल सी उठन लागी भयो अनुकूल न मयंक अरसीली को। 'हरिऔध' मंद - मद - मारुत हरयो अनंद लूटन लग्यो है मैन चैन हूँ छबीली को । लाल विन एरी बीर मंजुल-निकुंज हूँ मैं नीरस भयो है रस ललना - रसीली को ।। १ ।। उत्कंठिता आने का निश्चय करके भी जिसका प्रियतम विहार-स्थल में यथासमय न आवे -अथवा आवे ही नहीं, उस आकुल और उत्कठित स्त्री को उत्कंठिता अथवा उत्का कहते हैं! उदाहरण मुग्धा दोहा- कहा भयो आये न क्यों मुख ते कढ़त न वैन । चित चंचलता कहत है चंचल नयनी नैन ।। १ ।। कहाँ रुके अरुके कहा किधौं गये पथ भूल । या सोचन चंपक - वरनि बनी कुसुम को फूल ॥ २ ॥ मध्या दोहा- भई वेर क्यों का भयो यह विचारि सुकुमारि । कौं विलोकति पथ कबौं भरति लगन मैं वारि ॥१॥