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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४०७

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रसकलस तन . दोहा-- कोमल-सुख ते कढ़त है कोमलतामय बैन । ललित देखि ललकत रहत धीरललित को नैन ।।३।। मैं मन मैं नयन मैं बहत रहत रस - सोत । चिंतामनि चोरी भये चित चिंतित नर्हि होत ||४|| ललकि लुनाई लखन की लोयन को है लाग । अगन मैं छलकत रहत राग-रग अनुराग ॥शा ४~-धीरप्रशान्त नायक के अधिकाश गुणों से युक्त प्रशान्त ब्राह्मणादिक को धीरप्रशान्त कहा जाता है, इनमें त्याग और क्षमाशीलता की विशेषता होती है। उदाहरण कवित्त- परम-कुलीन है कुलीनता को गौरव है पे न काहू अकुलीन कॉहिँ निदरत है। विभव-भरो हैन अनुभव-हीनता है भूति-हीन-जन को विभूति वितरत है। 'हरिऔध' मूर है पै बनत कवौं ना सूर मारो-उर-तम सर मरिस धीर है पं देसि के अधीर को अधीर होत बीर है पं धर्मवीर-धीरता बरत है ।।१।। वीरता गभीरता विदित वर वीरता में मबल-सरीरता में साति निवसति है। तेज पोज माहम अभीति नीति रीति माहि प्रीति-परतीति माहिं मुचिता बसति है। हरत है।