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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४२८

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१८१ उद्दीपन-विभाव उद्दीपन-विभाव जो रस को उद्दीपित करते हैं उन्हें उद्दीपन-विभाव कहते हैं। सखा, सखी, दूती, ऋतु, पवन, धन, उपवन, चद्र, चाँदनी, पुष्प और परागादि उनके अतर्गत हैं। उदाहरण कवित्त-- कुंज - पुंज मैं है मंजु गुंजत मिलिद-बृद छबि - पुंजता है कंज - पुंज मैं कलोलती। भारवती सौरभ के भार ते विपुल बनि बैहर - बसंत की है मंद मंद डोलती। 'हरिऔध' लालिमा अनार कचनारन की ललकि ललकि है लुनाई - मुख खोलती। मानव - अबौरो - मन बार बार बौरो करि वौरी-कोकिला है बौरे-आमन पै बोलती ॥१॥ कौमुदी कुमोदिनी की परम - प्रमोदिनी है कमनीय - मेदिनी है कुमुद - निकर ते । राजित रजत - दुति ते है तरु - राजि - दल रुचिर बनी है वेलि रुचि - रुचिकर ते । 'हरिऔध' राका-रजनी हूँ लोक-रंजिनी है बहु - अनुरंजिता है कांति - कांतकर ते । सुधा-धाम बार वार करि वसुधा-तल को सुधा - बिदु चुवत सुधाकर के कर ते ॥ २ ॥