पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३२

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१८५ उद्दीपन-विभाव मुक्तामय कत करत नर्हि सींचि बारिधर - गात । लखे मालती - कुंज मैं कनक - वेलि लहरात ॥२॥ क्यो न मयूरी करति है सफल नयन - जलजात । कालिदी के कूल पै बिलसत बारिद - गात ॥३॥ ४--विदूषक विविध कौतुक, स्वाँग और हास-विलास द्वारा जो नायक और नायिका को आनदित करता रहता है उसे विदूषक कहते हैं । उदाहरण दोहा- हसत हॅसावत ही रहत रिझवत सहित बिवेक । सौतुक ललना लाल के कौतुक करत कितेक ।। १ ।। करत रसिकता ही रहत बसि रसिकन मन माँहि । हरि बनि राधा को छलत बनि राधा हरि कॉहि ।।२।। सखी जिस सहचरी से नायक-नायिका कोई भेद नहीं छिपाते तथा जो सुख- दुःख में सच्ची हितकारिणी और सहायिका होती है उसे सखी कहते हैं। उदाहरण दोहा- चित - कलिका हित जो वनति प्रातकाल की पौन । सखी सरिस सुखदाइनी सरसमना है कौन ॥१॥ सखी के भेद हित-दृष्टि से सखी चार प्रकार की होती है-१-हितकारिणी, २-व्यम्य- विदग्धा, ३-अंतरंगिणी और ४-बहिरंगिणी। कर्म उसके चार होते हैं- १-मडन, २-शिक्षा, ३-उपालंभ और ४-परिहास । २७