पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३३

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रसकलस १८६ १ हितकारिणी जो नायिका का कार्य शुद्ध हृदय और निष्कपट भाव से करती है वह सखी हितकारिणी कहाती है। दोहा- हित ही मैं रत रहति है हितू - सखी दिन - राति । सुखित सुख बिलोके बनति दुख मैं दुखित दिखाति ॥१॥ तन मन वारत ही रहति धरति न धन को ध्यान । सखी निबाहति नेह है हित पै है बलिदान ॥२॥ २-व्यंग्यविदग्धा उचित अवसर पर जो व्यग्य-वचन द्वारा अपना कार्य साधन करती अथवा निज अभिप्राय प्रकट करती है, उसे व्यग्य वदग्या सखी कहते हैं। उदाहरण दोहा- कत अगिराति जम्हाति बहु भयो कौन सो तंत । कत धरकत उर अधर कत अरी भयो छतवंत ॥१॥ वाल कहा तेरे भये लोचन इतने लाल । वाम विलसत लाल हैं परिगो किधौं गुलाल ॥ २॥ ३-अंतरंगिणी सर्वमेदन और प्रत्येक रहस्य की बात जाननेवाली सखी अंतरंगिणी कहाती है । यह सखी जो कार्य जिसके निमित्त करती है उसका ज्ञाता उसको छोड़ अन्य नहीं हो सकता। उदाहरण दोहा- सब मम मन ही की करति मान - भरी रहि मौन । अंतरंगिनी के विना अंतर जानति कौन ॥१॥