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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४४४

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१६७ सहीपन-विभाव - कवित्त- दूनी आब - ताब है गुलाब गुलदाउदी मैं आभा उपनाति सी लखाति है निवारी मैं। चंपा चारु-चाँदनी पै चौगुनी चढ़ी है विभा सौगुनी-प्रभा है सेत - सेवती सॅवारी मै। 'हरिऔध' जैय कत कलित - कुसुम काज कूल कालिंदी की वा अलीनवारी-बारी मैं। न्यारी-न्यारी छबि के सुगंध-वारे प्यारे-फूल क्यारी-क्यारो फूले हैं हमारी फुलवारी मैं ||२|| अन्य उद्दीपन-विभाव पवन दोहा- परसि परसि काको नहीं पुलकित करत सरीर । सहज · सुवासन ते सनो सीतल - मंद - मंद - समीर ॥१॥ वन दोहा- अलका को मोहत रहति वाकी ललित - निकुंज । नंदन-अभिनंदन अहै छिति-तल-वन छवि-पुंज ||१|| पादप-पुंज-प्रधान-थल खग - मृग - निकर - निवास । बहु-विलसति बन भूमि है वनि मधु-मंजु-मवास ||२|| उपवन दोहा- कलित-पादपावलि-लसित ललित-लवान-निकेत। मंजुल कुसुमावलि-वलित उपवन है छवि देत ॥१॥ -