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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४५८

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२११ उद्दीपन-विभाग छीरनिधि कैधों आज छहरत भूतल पै छायानाथ कैधो छपानाथ मिस ऊगा है। सुभ्रता सतोगुन की राजत दिगंत मै के समवेत - सेतता तिलोक की अजूबा है। 'हरिऔध सरद मै कैधौं सुर - मंडल ने रजत - मयी कै मंजु - मेदिनी को पूजा है । कोऊ नट-कीली जोति कैधौं अटकीली भई चटकीली - चॉदनी कै बगरी चहूघा है ॥६॥ कैघों महा तीव्र - तेज-वारो वड़ो-तारो कोऊ तजिकै अनंत या धरा की ओर छूट्यो है। कैधों ओप - वारे असुरारि को अपार जूह मोद मानि सुंग पै हिमाचल के जूट्यो है । 'हरिऔध' कैयो चारु-सरद-सिता है लसी कैधों भूपै हीरा की कनीन कोऊ कूट्यो है । छीरनिधि कैधों आज फूट्यो है वसुंधरा पै छिति पै छपाकर कै नभ छोरि टूट्यो है ।। ७ ।। अंतक लौं दिव मैं दिपत निसिकंत कै प्रकास प्रलै - काल के दुरंत-दिनपत को । महा - ताप - वारो चलै मारुत चहूंघा किधौं स्वास विख - वारो है फनीस फुकरत को। 'हरिऔध' किधौँ तीव्र - तारक - पतन होत पावक वमत कै त्रिसूल पसुपत को। पसरी कराल - काल - सरद -जुन्हैया किधौं ज्वालमाल आवत है जारत जगत को ।। ८ ।।