पृष्ठ:रसकलस.djvu/४७२

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२२५ अनुभाव अनुभाव जिन क्रियाओं से रसास्वाद का अनुभव होता है उनको अनुभाव कहते हैं। यह चार प्रकार का होता है-१-सात्त्विक, २-कायिक, ३-मानसिक और ४-आहार्य। १-सात्विक शरीर के स्वाभाविक अग-विकार को साविक भाव कहते हैं। इनके आठ मेद निम्न लिखित हैं- १-स्तंभ, २-स्वेद, ३-रोमाच, ४- स्वर-भग, ५-कंप, ६-वैवर्ण्य, ७-अश्रु और ८-प्रलय। किसी किसी ने जुभा को भी सात्विक भाव माना है; ऐसी दशा में उसके नव भेद होंगे। स्तंभ कारणविशेष से समस्त अंगों की गति अथवा क्रिया का अवरोध हो जाना स्तम कहलाता है। उदाहरण दोहा-- लाल लखे ललना छकी भो चित विपुल अचैन । बोले बोलत नहिँ बनत खोले खुलत न नैन ।। १ ॥ पारे पलक परत नहीं लोयन भये अडोल । लोल - लोयनो करति है काहे नाँहि कलोल ॥२॥ स्वेद केलि, भय, परिश्रम आदि के कारण रोम-कूप से निकाले जल-बिंदु को स्वेद कहते है।