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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४७६

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२२६ अनुभाव उदाहहण दोहा- जुरे नयन पिय-नयन ते नयन फेरि फिरि जाति । सजल-भाव ते भूरि भरि जलज-मुखी जमुहाति ।। १ ।। २-कायिक आँख, भौंह, हाथ आदि शरीर के अंगों द्वारा जो चेष्टाएँ अथवा क्रियाएँ की जाती हैं उनको कायिक कहते हैं। उदाहरण सवैया- अति प्यार-पगी वतिया हुँ सुने पिय-प्यारे प्रतीति को छोरै लगी। अनुराग-रेंगे अभिलाखन मैं अभिमान के आखर जोर लगी। 'हरिऔध' के सीस महावर-रेख निहारत ही मुख मोरै लगी। तिरछी अखियान ते ताकि तिया अनखान-भरी तृण तोर लगी ||१|| ३-मानसिक मन-सधी आमोद-प्रमोद का नाम मानसिक अनुभाव है। उदाहरण कवित्त-- गिरि-सानु पै है चारू चाँदनी लसति कैसी पसरी प्रभा है कैसी पादप-निकर मै।