पृष्ठ:रसकलस.djvu/४८४

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२३७ अनुभाव उदाहरण दोहा कल-रव है चिरियान को धुनि कटि-किकिन की न । कहा छरी मति जाति है निरखत फूल - छरीन ।। १॥ अदल बदल भूखन गये तन-सुधि रही न तोहि । तौ मन तौ मन नहिं रह्यो मनमोहन पै मोहि ॥२॥ ५-किलकिंचित एक साथ ही भय, हास्य, बास, क्रोध, कुछ मुसुकुराइट आदि का प्रकट होना किलकिंचित कहलाता है। उदाहरण दोहा- रोस करति रूसति हसति विकसति बनति स-भीत । जोहि जोहि तिरछे नयन मोहि लेत मन - मीत ॥१॥ लजति मजति खीजतिजजति सजति सजावति गात । वरसि वरसि रसरिस करति कहति रसीली-वात ॥२॥ ६-मोट्टायित प्रियतम के रूप, गुण, स्वभावादि की प्रशंसा अथवा वर्णन सुनकर मुग्ध अथवा अनुरक्त होना मोद्यायित कहलाता है। उदाहरण दोहा- सुनत स्याम - धन के सरिस अहैं लरस घनस्याम । प्रेम - वारि लोयन भरे वरसे मुकुत ललाम ।। १॥ कहत वाल - रवि के सरिस बल्लभ हैं गोबिद । विकसित भो तिय-मुख-कमल पुलके नयन-मिलिंद ॥२॥