सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रसकलस.djvu/४८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रसकलस २३८ ७-बिब्बोक गर्व-पूर्वक प्रिय के अनादर का नाम बिब्बोक है । उदाहरण कवित्त- बन-वारो कारो-कूर-किंसुक न पावै ठौर उपवन-वारी मजु-मल्लिका की क्यारी मै । बैठि नहिं क्यों हूँ सकै बायस-लडेतो जाय मंडली-मराल-बालिका की छबि-वारी मैं। 'हरिऔध' कौन तू कहाँ को है बिचारै किन नेसुक मैं नातो नद हूँ को देहौं गारी मैं। कैसे सौंहैं दीठ तू करत रे कुँवर कान्ह जानत कहा न बृखभानु की दुलारी मैं ॥३॥ ८-कुट्टमित सुख-समय में मिथ्या दुःख-चेष्टा और कृत्रिम रोष प्रकट करने का नाम कुट्टमित है। उदाहरण सवैया- तोसों गरीब सनेह कै मो सम राज-सुता सों कहा फल पैहै। तेरे समान सपूत सों नेह कै कौन तिया जग में जस लैंहै। दूर खरे 'हरिऔध' रहो परे छाँह तिहारी सवै बिनसैहै । साँवरों नंद को छोरो छुवै जनि गोरो सरीर मो गोरो न रैहै ।। १ ।। ९-विहृत सयोग-समय में लजादि के कारण मनोभिलाष में व्याघात उपस्थित होना विहृत कहलाता है।