पृष्ठ:रसकलस.djvu/५७२

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m ३२३ रस निरूपण खलन की खाल खींचि लैहौं खलता के किये बाल बाल बीनिहीं विरोधी-बल-शाली को। 'हरिऔध' कर मैं कराल - करवाल गहि अरि-कुल काल है रिझहौं मैं कपाली को। मानव अमंडनीय - मुंडन को काटि काटि मुंडन की मालिका पिन्हैहौं मुंडमाली को ॥ ६ ॥ पातक को पल पल प्रबल-प्रसार खि जा दिन अपार - विकरार रूप धरिहौं । करिकै प्रकंपित पताल के प्रवासिन को गरल सहस्र - फन फूंक लौ बितरिहौं । 'हरिऔध' दिपत-दिगंत मैं वारि भरि प्रलय • प्रभाकर लौँ व्योम मैं विचरिहौ । ज्वाल पर ज्वालामुखी लौं वमन करि सारी मेदिनी को ज्वाल-माला-मयी करिहौं ॥७॥ बाल बाल बिने पै मनोवल न जाको जात सोई बलवान गयो सबल बखानो है। सोई साहसी है जो समर मैं सपूती करें रोम रोम मॉहिं जाके साहस समानो है। 'हरिऔध' बाहु - बल विजय - बधावरो है सूरन की सूरता अमरता बहानो है। हबो ना अधीर धीर-धीरता को बैभव है हबो ना अ-वीर वीर वीरता को वानो है ॥८॥ परम अकुंठित बिरोधिनी स - कंठता की कुलिस सी कठिन कठोरता मैं ढाली है।