पृष्ठ:रसकलस.djvu/५९२

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३४३ रस निरूपण भयानक स्थायो भाव-मय देवता-काल वर्ण-श्याम अथवा कृष्ण आलंबन-भयंकर दृश्य, घोर दर्शन जन्तु अथवा प्राणि विशेष, भीति- वर्द्धक स्थान आदि। उद्दीपन-भयंकर दृश्यों का अवलोकन, भयजनक प्राणियों और स्थानों का दर्शन, उनकी चेष्टायें और उनके कार्यकलाप । अनुभाव-विवर्णवा, कप, मूर्छा, स्वेद, रोमाच, स्वरभग श्रादि । संचारी भाव-आवेग, मोह, त्रास, दैन्य, शंका, तथा मृत्यु आदि । इस रस में इंद्रिय विक्षोभ के साथ भय की पुष्टि होती है। इसके पात्र कापुरुष और भीरु स्त्री आदि हैं। विशेष किसी किसी ने इस रस का देवता यमराज को माना है । भय की विभूति मनहरण कवित्त याजन यजन वहु - साधन - विराग राग व्रत उपवास काल - त्रास करतूति है। सॉसत - सहन नाना - सासन प्रतीति प्रीति सहज - भयानक - विभावना प्रसूति है।