पृष्ठ:रसकलस.djvu/५९४

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३४५ रस निरूपण बीरता - विकंपित भई है बॉके-बीरन की वैरिन के वैभव बलूले लौं बिलाने हैं। 'हरिऔध' कर-करवाल - गहे केते भीरु भीत है कै गिरि की गुहान मैं सामने हैं। धनु ताने केते हहराने केते थहराने केते महराने केते भभरि पराने हैं ।। १ ।। बासर बड़े हैं पै अवासर बनेंगे विधि लोमसता चाव कोलौं लोमस दिखावेंगे। चिरजीवी जेते हैं न वेऊ चिरजीवी अहैं कैसे चिर-जीवन जगत जीव पावेंगे। 'हरिऔध' अमरावती न अमरावती है सारे लोक काल के उदर मै समावेंगे। कौन है अमर ? है अमरता निवास कहाँ ? एक दिन अमर - अमर मर जावेंगे ॥२॥ प्रलय काल कवित्त सारे - लोक लोकपाल सहित विलोप है कुल - कला-निधि काल - गाल में समावैगे तारकता तजि तजि वारक तिरोहित है प्रलय • पयोधि मैं बलूले पद पावैगे। 'हरिऔध' देव देव - लोक हूँ दुरगे कहूँ दिवि मै दिवा - पति न दिपत दिखावैगे। मिलि जैहैं सारे भूत ही न पंच भूत मॉहिं एक दिन पंच - भूत भूत बन जावेंगे ॥ १ ॥ ३७