कैसे हो सकता है ? पिङ्गल पढ़ लेने और काव्य-भास्कर या काव्य कल्पलता देख जाने से यदि कोई कवि हो सकता तो आज कल कवि गली-गली मारे-मारे फिरते। तुकबन्दी करना और चीज है, कविता करना और चीज़।
शिक्षित कवि की उनियो मे चमत्कार का होना परमावश्यक है। यदि कविता मे चमत्कार नहीं--कोई विलक्षणता नही तो उससे आनन्द की प्राप्ति नही हो सकती। क्षेमेन्द्र की राय है-
यदि कवि में चमत्कार पैदा करने की शक्ति नही तो वह कवि नहीं। और यदि चमत्कार-पूर्ण नही तो काव्य का काव्यत्व भी नहीं । अर्थात जिम गद्य या पद्य मे चमत्कार नही वह काव्य या कविता की सीमा के भीतर नहीं आ सकता-
काव्य चाहे कैसा ही निर्दोष क्यो न हों; उसके सुवर्ण चाहे कैसे ही मनोहर क्यो न हो-यदि उसमे अनमोल रत्न के समान कोई चमत्कार-पूर्ण पद न हुआ तो वह, स्त्रियो के लावण्य-हीन यौवन के समान, चित्त पर नही चढ़ता ।
कविता मे चमत्कार लाना लाख पिंगल पढ़ने और रस, ध्वनि तथा अलङ्कारादि के निरूपक ग्रन्थो के पारायण से सम्भव नहीं। उसके लिए प्रतिभा, साधन, अभ्यास, अवलोकन और मनन की जरूरत होती है । पिङ्गल आदि का पढ़ना एक बहुत ही गौण