पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/७७

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६-हंस-सन्देश
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उसकी सहचरी आगे चल कर बड़ी ही मधुर और रस-भरी वाणी से, उसे पुकार रही है। परन्तु वह उसके पास नहीं जाता। वह चाहता है कि तू अपने पाणि-पल्लव से मृणाल का एक टुकड़ा उसकी चोंच में रख दे। क्या बात है? हैं, क्या कारण कि यह अतर्कित आई हुई पियराई, कनक-चम्पक के समान तेरी गौर कान्ति को बिगाड़ रही है? एक तो तू स्वयं ही दुबली-पतली थी, तिस पर यह अधिक दुबलापन क्यों ?"

इस प्रकार सैकड़ों तरह की बातें दमयन्ती की सखो ने उससे पूछीं, परन्तु, उत्तर में, दमयन्ती के मुंह से एक भी शब्द न निकत्ता। वह पववत् चुपचाप बैठी रही। हाँ, एक लम्बी उसाँस मात्र उसने ली। तब उसकी एक और सखी बोली। दमयन्ती के मौनावलम्बन और दुबलेपन का कारण वह समझ गई थी। उसने कहा-

"इसका पिता इसे एक योग्य वर को देना चाहता है। इसलिए उसने; कुछ समय हुआ, अनेक चतुर चित्रकारों को बुलाया। उनसे उसने हजारो रूप-गुण-सम्पन्न राजकुमारो के चित्र तैयार कराये। एक दिन वे चित्रफलक मेरी नजर मे पड़ गये। मुझ पर मूर्खता सवार हुई। मै उनको इसके पास उठा लाई। इसने बड़े ध्यान से उनमें से एक-एक को देखा। देखते-देखते एक त्रिलोकी- तिलक युवा पर यह मोहित हो गई। तभी से इसकी हालत खराब है। तभी से यह अथाह चिन्ता-सागर में गोते खाती जा रही है।

इसके शरीर के भीतर जलने के भय से इसकी श्वास-वायु इससे दूर भाग रही है। ऑसुओं की धारा में डूब जाने के डर से नीद इसके नयनों के पास नही आती। उशीर का लेप लगाने से यह और भी अधिक सन्तप्त हो उठती है। कमलिनी-दलों के पखे को देख कर इसे क्रोध आता है। जिसने इसके हृदय मे प्रवेश