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रसज्ञ-रञ्जन,
 

नल के चरित्रदाय, साहस और स्वार्थत्याग का यह अद्भुत उदाहरण है। अब, इस समय यह दोनो प्रेमी एक दूसरे के सामने हैं। नल से तो कोई बात छिपी नही, पर दमयन्ती को इसका अत्यल्प भी ज्ञान नही कि यह कौन है। इससे इस घटना की महत्ताब_त बढ़ गई है-इसमें एक अनिर्वचनीय रस उत्पन्न हो गया है अस्तु।

नल के अकस्मात् प्रकट होने पर दमयन्ती और उसकी सहेलियो ने उसे इस अनिमेष-भाव से देखा मानो वे उसे दृष्टि-द्वारा पी जाना चाहती हैं। नल को इस तरह कुछ देर तक देख चुकने पर, किसी-किसी कामिनी ने लाज से सिर. नीचा कर लिया, किसी-किसी ने उसके रूप-लावण्य के समुद्र मे गोता लगाया। और, किसी-किसी ने उसे प्रत्यक्ष मन्मथ समझ कर विस्मय की पराकाष्ठा के पार प्रयाण किया।

किसी को यह बात पूछने का साहस न हुआ कि आप कौन है और कहाँ से आये हैं। नल के अपूर्व रूप और आक-स्मिक प्रादुर्भाव ने उन्हे अप्रतिभ कर दिया। उनसे उस समय केवल यही बन पड़ा कि, अभ्युत्थान की वाञ्छा से, अपने-अपने आसनो से वे उठ खड़ी हुई। नल के संदर्शन से दमयन्ती को वैसा ही परमानन्द प्राप्त हुआ जैसा कि वर्पा-काल आने पर पर्वत से निकली हुई नदी को मेघो के धारासार से प्राप्त होता है।

नन के प्रत्येक अङ्ग की सुन्दरता का मन ही मन अभिनन्दन करके दमयन्ती के हृदय मे जिन भावो का उदय हुआ उनका वर्णन करने में केवल महाकवि ही समर्थ हो सकते है। दमयन्तो ने देखा कि उसकी सारी -सहेलियाँ कुण्ठित-कण्ठ हो रही है। उनके मुख मण्डलो पर आतङ्क छाया हुआ है। अतएव वे दम- यन्ती की तरफ से उस आगन्तुक पुरुष से कुशल-प्रश्न करने मे असमर्थ हैं। लाचार, नव-मुखी दमयन्ती स्वयं ही नल से इस प्रकार गद्गद् भाव-पूर्ण वाणी बोली-