पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१२४ रसिकप्रिया न्योते के मिस को मिलन, यथा-( कबित्त ) (१७३) न्यौति के बुलाई हुती बेटी वृषभानुजू की, जेंबे कौं जसोदा रानी आनी हैं सिँगारिकै । भोजन कै, भवन बिलोकिबे कौं पान खात, ऊपर अकेली गई आनँद बिचारिकै। देखत देखत हरि भावते कों भागी देखि, दौरि गही ब्यालु ऐसी बेनी डर डारिकै । भेंटी भरि अंक मनभायो करि छाड्यो मुहुँ, केसरि सों माँडि लई बेसरि उतारिकै ।३४। शब्दार्थ-जेंबे कौं = भोजन करने के लिए। पान खात = पान खाती हुई। अानंद बिचारिकै = हर्षपूर्वक,—खुशी मन से। माँडि = मंडन करके, मलकर, लगाकर । बेसरिनाक में पहनने की छोटी नथ । भावार्थ-(सखी की उक्ति सखी प्रति) हे सखी, यशोदा रानी ने वृषभानु की बेटी को भोजन करने के लिए न्यौता देकर बुलाया था, उसका शृंगार करके यशोदा जी ( खाने के लिए उसे भोजनालय में ) ले गईं-भोजन करके वह पान खाती हुई घर देखने के लिए प्रसन्न मन से ऊपर अकेली ही चली गई । प्रिय श्रीकृष्ण को देखते देखते ही ( देखकर तुरंत ही ) भागी। उन्होंने ( उसे भागते ) देख दौड़ते हुए भय त्याग कर उसकी नागिन सी चोटी पकड़ ही तो ली। फिर गोद में भरकर आलिंगन करके उसके साथ मनमानी करके ( दंत-क्षत को छिपाने के लिए ) बेसर उतारकर ( हटाकर ) मुंह में केसर मलकर तब छोड़ा। सूचना-बेसर इसलिए उतारी कि केसर मलने में गहना हाथ में न लगे । (१७४) वन-विहार के मिस को मिलन, यथा-( कबित्त ) देहि री कान्हि गई कहि दैन पसारहु ओलि भरौ पुनि फेटो। छाड़ी नहीं मग, छाडौं जौ या पै छुड़ावौ बिलोकनि लाजलपेटी। बात सँभारि कहौ सुनिहै कोऊ जानत हौ यह कौन की बेटी ? । जानत हैं वृषभानु की है पर तोहि न जानत कौन की चेटी ३५॥ शब्दार्थ-अोलि = अोली, अंचल या दुपट्टे को फैलाकर उसे वस्तु रखने की झोली के रूप में बना लेने को अोली कहते हैं। फेटी- फेट ( कमर की ) । या 4 = इससे । लाजलपेटी =लाज से युक्त । चेटी =दासी । भावार्थ-( नायक के साथ नायिका की दासी का संवाद, दासी अपनी स्वामिनी की ओर से बोल रही है)। ३४-जब-जेंइवे । हैं-ही। लई-लीनी, लोन्हो । ३५-बन-सु बन । देहि री-दै दधि । जो०-जु पाए । छुड़ावी-छुड़ावै । कौन०-को महरेटी।