पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१५०

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सप्तम प्रभाव १५३ करि-अत्यंत कठिनाई से । कहा -क्यों । इनके = इस नायिका के । ढिग 3 पास । कहैं = कहिहैं, कह देंगे । जाउ० = जाते क्यों नहीं, कोई जाकर यदि ये समाचार (उस नायिका को जिससे भोजन करके आने की कह पाए हैं) सुना पाए तो। उमहे = उमड़ने पर। बहुरयो=तदनंतर । रैहैं = रहिहैं, रहेंगे, रुकेंगे । पुनि रहैं: क्या फिर रोके रुक सकेंगे? अथ विप्रलब्धा-लक्षण--(दोहा) (२५६) दूती सों संकेत कहि लैन पठाई श्राप । लब्धविप्र सो जानिये, अनाए।संताप ॥२२॥ शब्दार्थ-लैन पठाई = बुलाने के लिए भेज दी । प्रच्छन्न विप्रलब्धा, यथा--( सवैया) (२६०१ सूल से फूल सुबास कुबास सी भाकसी से भए भौन सभागे। केसव बाग महावन सो जुर सी चढ़ी जोन्ह सबै अंग दागे। नेह लग्यो उर नाहर सो निसि नाह घरीक कहूँ अनुरागे। गारी सो गीत बिरो बिष सी सिगरेई सिँगार अँगार से लागे ।२३। शब्दार्थ--सूल = ( सं० शूल ) काँटा। कुबास = दुर्गंध । भाकमी = (भस्त्रा) भाड़, भरसाई । भौन = महल । सभागे = अच्छे, मनभावने । बाग= बगीचा, उपवन । महाबन =घोर जंगल सा भयावना। जुर सी =ज्वर की भांति । जोन्ह = (ज्योत्स्ना) चांदनी। दागे = जलाए । नाहर=सिंह ( की भांति त्रासद)। निसि = रात्रि में । नाह = नाथ ( पति ) । घरीक 3D घड़ी भर । निसि नाह = रात्रि में घड़ी भर के लिए अपने पति के कहीं अन्यत्र रम जाने के कारण । गारी से = गाली की भाँति अप्रिय । बिरी = पान का बीड़ा। प्रकाश विप्रलब्धा, यथा-( कबित्त ) (२६१) देखत उदधिजात देखि देखि निज गात, चंपक के पात कछू लिख्यो है बनाइकै। सकल सुगंध टारि फूल-माल तोरि डारि, दूतिका को मारि पुनि बीरी बगराइकै । लै लै दीह साँस तजि बिबिध बिलास हास, केसौदास कै उदास चली अकुलाइकै । सेइकै संकेत सूनो कान्हजू सों बोलि ऊनो, मोसों कर जोरि दूनो दूनो दुख पाइकै ॥२४॥ २२-कहि-बदि, करि । लब्ध--लब्धा । सो-सु। जानिये-जानि । २३-सभागे--सुभागे । गारी सो--गारो से । २४-टारि--ढारि । बीरी-बीरा । हास-पास । बोलि-मान । कर०-जोरे कर, करयो जोर, करि जोसो । दूनो- बोली दूनों।