पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१५६

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सप्तम प्रभाव १५६ अथ उत्तमा-लक्षण-( दोहा ) (२७२) मान करै अपमान ते, तजै मान तें मान । पिय देखें सुख पावई, ताहि उत्तमा जान ॥३५॥ उत्तमा, यथा- -( सवैया ) (२७३) होइ कहा अब के समुझे न तबै समुझे जब हे समुझाए । एक ही बंक बिलोकनि माँह अनेक अमोल बिबेक बिकाए । जानिपनो न जनावहु जी जनमावधि लौं उहि जानि हो पाए। बातें बनाइ बनाइ कहा कहो लेहु मनाइ मनाइ ज्यों आए !३६॥ शब्दार्थ -अब के समुझे = इस समय समझने से । समुझाए हे = समु- 'झाए गए थे। हौं = मैं । बंक बिलोकनि = टेडी चितवन । माँह = में । अमोल = अमूल्य । बिबेक = ज्ञान । जानिपनो = ज्ञानीपना, चतुराई । जनमा- वधि लौं- जन्म भर में, सारी जिंदगी लगाकर । भावार्थ-( सखी की उक्ति नायक प्रति ) जब मैंने आपको समझाया तब तो आपने समझा नहीं, अब समझने से भी क्या लाभ ? ( अन्य नायिका की ) एक ही टेढ़ी चितवन में आपके अनेक अमूल्य ज्ञान बिक गए। आपने यह नहीं समझा कि वह अप्रसन्न हो जाएगी। प्रापका ज्ञानीपना समझ गई । उसे दिखाने की कोशिश मत कीजिए। सारी जिंदगी खपाकर तो उसे किसी प्रकार मापने समझा है । उसके स्वभाव को पहचाना है। बातें बना बनाकर कहने से क्या होगा? जैसे उसे पहले मनाते रहे हैं उसी प्रकार फिर क्यों नहीं मना लेते ? अथ मध्य मा-लक्षण-(दोहा) (२७४) मान करै लघु दोष तें, छोड़े बहुत प्रनाम । केसवदास बखानिय ताहि मध्यमा बाम ।३७ शब्दार्थ-बहुत प्रनाम = बहुत प्रणाम करने पर. पैरों पर गिरने से । मध्यमा, यथा - ( सवैया ) (२७५) भूलेहूँ सूघे नहीं चितयो इहिं कान्ह कियो लचि लालच केतौ। हाहा के हारि रहे मनमोहन पाइ परे त्यों परेई रहे तौ। हों तो यहै तब ही की बिचारति होती गुमान क्यों याहि धौं एतौ। लॉबी लट अरु पातरी देह जुनेक बड़ी बिधि आँखि न देतौ॥३८॥ शब्दार्थ-लचि = नम्रतापूर्वक । हाहा कै = दीनता दिखाकर । ३५–पिय-प्यो। ३६-होइ-होहि । हे-हौं । जानिपनो-जानि परौ, जान परचो । बात-बात । ३७ -छोड़-छोड़ो। छोड़-तजै मान तें मान । वखानिय-बखानिहु । ३८ -मनमोहन-पुनि केसव । पाह-प्यारी के पाइ। त्यों- तो । बिचारति-बिलोकति । याहि धो-खाहि सो । धौ-तौ । एतौ-केतो।