पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१६३

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रसिकप्रिया यह आवै। शब्दार्थ-माई = माता, सखी ( संबोधन )। इनको = श्रीकृष्ण का । हितू = कल्याण चाहनेवाला, हितुआ। कहे = अर्थात् पूछे । किहि बाइ बहे हैं = किस वाह (प्रवाह) में बह रहे हैं, किस ढर्रे पर जा रहे हैं । न्यायहीं - ठीक ही है। कुलनारि = कुलवती स्त्रियाँ । कुलटा० = कुलटाएँ जो कुलवती स्त्रियों का नाम धरने लगी हैं वह ठीक है, क्योंकि जब इनकी यह करनी है तो उन बेचारियों का नाम रखा ही जायगा, उनकी बदनामी कुलटाएँ करेंगी ही । टकी = टकटकी । लगाकर ) । इत = इधर की ओर । सोनो सो घालिकै चाहि रहे हैं = 'सोना फेंककर देखना' ध्यान देकर देखने या घूरने के अर्थ में आता है । देख कैसी टकटकी बाँधकर घूर रहे हैं । को है० = पूछते हैं कि तू कौन है मानो जानते ही नहीं । अभी कल इन्हीं से मैंने उसके ( नायिका के) संदेश कहे हैं। सूचना-छपी प्रतियों में निम्नलिखित सवैया भी मिलता है जिसे 'सरदार' ने केशव का नहीं माना है- केसव नैननि लागिहै ज्यों वह मूरु कै प्रेम अदृष्ट बढ़ावै । क्यों वह कामकला मिलै मोहिं सु तौ मन मूढ़ उपाउ न पावै । कीजै कृपा बुधि दीजै बुधीसजू राधिका के उर लागति ज्यों कबहूँ कबहूँ मुख चंपक ज्यों मुख सो मुख लावै । अथ चिंता-लक्षण--( दोहा ) (२६६) कैसें कै मिलिय, मिलें हरि कैसे बस होइ । यह चिंता चित चेत के, बरनत हैं सब कोइ ।१५। शब्दार्थ-मिलिय - मिलू। मिलें = मिलने पर । धौं = न जाने । चेत कै= विचारकर। श्रीराधिकाजू की प्रच्छन्न चिंता, यथा-(दोहा) (२६७) आपुनहीं तन, आपुनो होत न देखें जाहि । आपुनहीं तें आपनो क्यों मन, करिहै ताहि ।१६। शब्दार्थ-आपुनहीं = अपना ही। तन = शरीर। आपनो = अपना। जाहि = जिसे । आपनहीं तें = स्वयम् अपनी ओर से । करिहैं करेगा। भावार्थ-( नायिका की उक्ति मन के प्रति ) हे मन, जिस नायक को देखकर अपना ही शरीर अपने वश में नहीं रह जाता वे स्वयम् तेरे वश में हो जाएंगे ऐसा कैसे संभव है। १५-कैसे कैसे मिलिए । कैसे-कैसें धौं । बरनत० -रहै निरंतर सोइ । १६-मापुनहीं०-अपनोऊ तन, मापुनहीं तू, अपुनउ तनु तू ।