पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१६७

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१७० रसिकप्रिया हाथ कोमल एवम् सुगंधित हैं पर कमल-नाल तो कैंटीली होती है ( फिर दोनो की समता कैसी? )। मदनगोपाल के नेत्र विशाल और सुंदर हैं पर कामदेव के बाणों के तो दर्शन ही दुर्लभ हैं ( इसलिए यह उपमान भी ठीक नहीं )। अलंकार-व्यतिरेक । श्री राधिकाजू को प्रकाश गुण कथन, यथा-( सवैया ) (३०३) खंजन हैं मनरंजन केसव रंजन नैन किधौं मति जी की। मीठी सुधा कि सुधाधर की दुति दंतन की किधौं दाडिम ही की। चंद मलो मुखचंद किधौं सखि सूरति काम कि कान्ह की नीकी। कोमल पंकज कै पद-पंकज प्रान पियारे कि मूरति पी की ।२२। शब्दार्थ---मनरंजन - मन को प्रसन्न करनेवाले । रंजन=रमानेवाले। मति = बुद्धि, वृत्त । जी=अंतःकरण। सुधा = अमृत। सुधाधर की अधर की सुधा, अधरामृत । दुति--प्रकाश, शोभा। दाडिम-अनार । नीकी भली । पंकज-कमल । पी की प्रिय की। भावार्थ- ( नायिका की उक्ति सखी से ) हे सखी, खंजन पक्षी विशेष मन का रंजन करनेवाले हैं अथवा प्रिय के नेत्र अंतःकरण की वृत्ति को विशेष रमानेवाले हैं। वह अमृत विशेष मधुर है या प्रिय का अधरामृत । अनार के दाने की शोभा विशेष आकर्षक है या उनके दाँतों की चमक । चंद्र विशेष अच्छा है अथवा उनका मुखचंद्र । काम की मूर्ति अधिक अच्छी है या श्रीकृष्ण की सुंदर मूर्ति । कमल विशेष कोमल हैं या उनके पदकमल । प्रारण अधिक प्रिय हैं या प्रिय की मूर्ति अधिक प्रिय है । सूचना-सरदार ने 'पीकी' का अर्थ 'पीका' के आधार पर निकाला है । वृक्ष में निकले नए पत्ते को 'पीका' कहते हैं । श्रीकृष्णजू को प्रच्छन्न गुणकथन, यथा-( सवैया ) (३०४) जौ कहौं केसव सोम सरोज सुधासुर भृगनि देह दहे हैं। दाडिम के फल श्रीफल बिद्रम हाटक कोटिक कष्ट सहे हैं। कोक कपोत करी अहि केहरि कोकिल कीर कुचील कहे हैं। अंग अनूपम वा तिय के उनकी उपमा कहँ वेई रहे हैं ।२३॥ शब्दार्थ-सोम = चंद्रमा । मुख.) । सरोज = कमल (नेत्रों ) सुधासुर: राहु । दाडिम-अनार ( दांत )। श्रीफल = बेल ( कुच )। विद्रुम- मूगा (होंठ)। हाटक = सोना ( शरीर का वर्ण, रंग)। कोक = चकवा ( स्तन )। कपोत = कबूतर ( ग्रीवा)। करी = हाथी ( गति ) । अहि = सर्प (बाहे) । केहरि-( सं० केसरी) सिंह ( कमर )। कोकिल = कोयल (वाणी )। २२-रंजन नैन इंगित नैन । किल-कैमधारस । किधौ-सखी लखि । २३-केहरि-केसरि ।