पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१८७

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नवम प्रभाव १६१ न करके तो भी तुमने इतना दुःख दिया। किसी लज्जा के कारण या प्यार के कारण भूल कर गईं जिससे हित की हानि हुई। तुमने लाल को अंक 'भरकर भेंटा नहीं और भर जीभ नई नई बातें भी नहीं की। अभी तो भर आँख उन्हें देखा भी नहीं फिर अपने चित्त को आज ही उनसे क्यों चलायमान कर लिया ? ( उनकी कही बातें क्यों नहीं करतीं)। सूचना-सखी नायिका को उलाहना देने आई है इससे नायक का लघुमान व्यक्त होता है । बहिरंग सखी भी जानती है, इसलिए प्रच्छन्न है । श्रीकृष्णजू को प्रकाशन लघुमान, यथा-( सवैया ) (३५२) बोलि ज्यों आए त्यों बोलत नाहिन मोसों कहा कछु चूक तिहारी। केसव कैसहूँ देखे सुने बिन जाने कहा कोऊ जी की पिहाँ री । खीर सिराइ न जानत खाइ, नई यह भूख की भाँति निहारी। काँचि ही दाखहि चाहत चाख्यो सु अंत तऊ तुम कुजबिहारी।१४। शब्दार्थ-चूक = भूल, अपराध । यहाँ = छिपी बात । खीर = दूध को ठंढा करके खाना भी नहीं जानते । भाँति = ढंग । दाख = ( द्राक्षा ) अंगूर । भावार्थ-(बहिरंग सखी की उक्ति नायक से) हे कुंजबिहारी, मुझसे क्या आपका कुछ अपराध हो गया है जिससे आप जैसे पहले (प्रेमपूर्वक) बोलते थे वैसे (माज) नहीं बोल रहे हैं ? कोई भी किसी प्रकार बिना देखे या सुने किसी के हृदय की छिपी बात कैसे जान सकता है (फिर मापने अकारण मुझसे क्यों मन मोटा कर लिया)। मैंने आपकी भूख का यह नया ढंग देखा कि दूध ठंढा भी नहीं होने पाता और आप खाने (पीने) की धुन लगाए हुए हैं। आप तो कच्चे ही अंगूर चखना चाहते हैं । प्राखिर कुंजबिहारी ही तो ठहरे (पूरे शाखामृग !)। सूचना-श्रीकृष्ण के मनोनुकूल नायिका ने आलिंगनादि नहीं किया, इसी से वे रूठे हुए हैं । अतः लघुमान है। बहिरंग सखी तक यह बात पहुँच चुकी है, इसलिए 'प्रकाश' है। सभी समझाती हैं कि नायिका के हृदय में प्रेम पक्का नहीं होने पा रहा है, आप उतावली मचा रहे हैं । 'अंत तऊ तुम कुंज- 'बिहारी' कहकर विनोद द्वारा मानमोचन भी करना चाहती है । अथ मध्यममान-लक्षण-( दोहा ) (३५३) बात कहत पिय और सों, देखै केसवदास । उपजत मध्यममान तह, मानिनि के सबिलास ॥१५॥ सूचना-(लघुमान वहाँ होता है जहाँ केवल अन्य स्त्री की ओर देखते हुए देख ले पर) मध्यममान वहाँ होता है जहाँ (अन्य स्त्री से) बात करते देख ले। १४-मोसों-मोते। तिहारी-निहा री। पिहां री-बिहारी, 'तिहारी। अंत० मानतहूँ । १५-पिय-तिय । सबिलास-अनायास ।