पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१९५

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दशम प्रभाव १६४ यह परिरंभन कहावै कौन केसौदास, मेरी सौं जो मोसों तुम राखहु दुराइकै । राधिका की अधिकाई कहा कहौं लीनो आजु, आपनो पियारो पीउ आपुहीं मनाइकै ।१०। शब्दार्थ -गाथा प्राकृत भाषा का मात्रिक छंद । भाउ= भाव, तात्पर्य । रदन थल - दंताघात का स्थान । करज = नख । करज थल = नख- क्षत का स्थान । परिरंभन =आलिंगन । अधिकाई = विशेषता । भावार्थ-(सखी की उक्ति सखी से) श्रीकृष्ण के मान करने की बात सुन- कर राधिका हँसती हँसती आईं और प्राकर श्रीकृष्ण को एक गाथा सुनाई। सुना• कर उन्होंने पूछा कि 'इसका तात्पर्य तो मुझको समझा दीजिए । (इसमें दंपति के एक साथ ही अधरपान की जो बात कही गई है वह) कैसे संभव है कि प्रिय और प्रेमिका परस्पर एक दूसरे का अधर-मधु-पान करें (दंत एवम् नखक्षत की बात जो कही गई है वह) दंतक्षत एवम् नखक्षत करने का स्थान कौन सा है ? इस प्रकार (स्वयम् आलिंगन करती हुई) आलिंगन करने की बात जो इसमें कही गई है वह कौन सा आलिंगन कहलाता है ? तुम्हें मेरी शपथ अगर मुझसे कोई बात छिपा रखो।' राधिका की विशेषता तो देख, उसने स्वयम् ही आज अपने प्यारे पति को मना लिया (हम लोगों की आवश्यकता ही न पड़ी)। सूचना-'यह परिरंभन कहावै कौन' कहती हुई नायिका ने आलिंगन- दान किया है । यही दान उपाय है। अलंकार-पर्यायोक्ति ( छल से कार्यसिद्धि )। अथ भेद-लक्षण-(दोहा) (३७०) सुख दैकै सब सखिनि कहँ, आपु लेइ अपनाइ । तब सु छुड़ावै मान बरनौं भेद बनाइ ।११। भावार्थ-जहाँ सखियों को अपनी ओर मिला लिया जाय और वे ही मान छुड़ाएँ, वहाँ भेद उपाय होता है। श्रीराधिकाजू को भेद उपाय, यथा-( सवैया ) (३७१) केसव धाइ खवासिनि तोहि सनी सकुचें सब आपनी घात। मोहिं तौ माई कहेही बनै अब बाँधि दई बिधि तो कहँ तात। नेक हरे हरें बोलि बलाइ ल्यौं हौं डरपौं गडि जाइ न माखन सो मेरे मोहन को मन काठ सी तेरी कठेठी ये बातें ।१२। १०-गाथा-गाहा । कहहु-कहौ धौं । एक ही-सु एक। रदन०-उरज करज । दोजहि-दीजै जू । केसौदास-केसौराय । राखहु-राखि हो । ११- सु छुड़ावै०-जु मनावै मानिनिहिं । छुड़ाव-छिड़ावै । बनाइ-सुनाइ ! १२- तो-ती। जाते-यातें। जाते