पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३६ ) आदि प्रयोग दूर तक फैले, यहाँ तक कि भिखारीदास की कृति में भी ये प्रयोग पाए जाते हैं। केशवदास से पहले होनेवाले तुलसीदास ने भी ऐसे प्रयोग किए हैं । हो सकता है कि तुलसीदास बुदेलखंड में भी कभी रहे हों, जिसके कारण वैसे प्रयोग उनकी कृति में आ गए हों। उनके गुरुदेव नरहरानंद नर्मदातट पर कुछ दिनों के लिए गए थे। उनसे भेंट करने तुलसीदास भी उधर गए थे और यमुनातट पर उन्होंने यमुना से विवाह कर लिया था । नर्मदा तक पहुँचने में बुंदेलखंड बीच में पड़ता ही था। बुंदेली में कुछ क्रियाएँ स्वरभेद से लिखी जाती हैं-जैसे 'छूवो' का 'छीबो', 'भूमिबो' का 'झीमबो' । केशवदास की रचनाओं में दो प्रकार की भाषा स्पष्ट है । रामचंद्रचंद्रिका और विज्ञानगीता में जिस प्रकार की भाषा है उस प्रकार की भाषा अन्य ग्रंथों में नहीं है । इन दोनों में संस्कृत की चाशनी कुछ कड़ी मिलाई गई है। इसके कारण पर अभी भली भांति विचार नहीं किया गया है। केशव रामचंद्र- चंद्रिका लिखते हुए हिंदी में संस्कृत के महाकाव्य की परंपरा प्रवर्तित कर रहे थे। उनकी लालसा थी कि उसमें संस्कृत के नाट्यतत्त्व का भी नियोजन कर दिया जाए, जिससे लीला के उपयोग में वह पा सके। केशव ने उसमें संवाद नाटकीय ढंग के रखे हैं। संस्कृत में रामकथा पर अनेक नाटक हैं। उनका अनुवदन, उनकी छाया का ग्रहण भी केशव ने संस्कृत वर्णवृत्तों में ही किया । संस्कृत के वर्णवृत्त संस्कृत भाषा की लपेट अधिक रखते हैं । यह स्थिति केशव की रचना में ही नहीं हिंदी के सभी प्राचीन कवियों की कृतियों में दिखाई देती है । जहाँ जहाँ संस्कृत वर्णवृत्तों का प्रयोग है वहाँ वहाँ भाषा में संस्कृत की झोंक अधिक है। आधुनिक युग में श्रीहरिऔध ने संस्कृत वर्णवृत्तों में प्रबंध लिखा तो प्रियप्रवास में संस्कृत का रंग अधिक चढ़ गया। हिंदी में स्तुति के प्रसंग में भी संस्कृत का सहारा लिया जाता रहा है । इसकी झलक तुलसीदास की विनयपत्रिका में पूरी मिलती है । विज्ञानगीता एक तो संस्कृत के प्रसिद्ध नाटक प्रबोधचंद्रोदय के आधार पर लिखो गई, दूसरे उसमें अन्य धार्मिक ग्रंथों से भरपूर सहायता ली गई। इसमें उद्धरण संस्कृत में ही प्रमाण के लिए केशव ने स्थान स्थान पर रखे हैं। छंद भी वहां वर्णवृत्त ही रखा गया है। फल यह हुआ कि भाषा संस्कृतमय हो गई। यह सत्य है कि केशव की दुरूहता का कारण संस्कृत के प्रयोगों या शब्दों का हिंदी में रखना है। पर यह कहना ठीक नहीं है कि उनकी शक्ति कम थी। भाषा पर उनका अधिकार रसिकप्रिया, कविप्रिया प्रादि ग्रंथों की उक्तियों में स्पष्ट दिखाई देता है। इसका कारण यही है कि इन ग्रंथों में संस्कृतग्रंथों से लक्षण के संबंध में सहायता अवश्य ली गई, पर उदाहरण हिंदी के छंदों में