पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/४

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( ४ ) सिंह तथा प्रयाग से दो-एक सज्जन उनकी रचनाओं में अनुसंधान करके डाक्टर हो गए । हिंदुस्तानी अकदमी ( प्रयाग ) से केशव-ग्रंथावली'अब निकली है । जायसी पर विस्तृत अालोचना पहले लिखी गई, जायसी-ग्रंथावली पहले निकली केशव-ग्रंथावली पिछड़ गई । यही नहीं केशव को 'हिंदी-नवरत्न' में जो स्थान मिला वह भी उनके अनुरूप उस समय बहुतों को नहीं लगा था। अब तो केशव पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता का भरपूर अनुभव करना ही त्याग दिया गया है । उनके संबंध में प्रायः ये उद्धरण दिखाई देते हैं- कठिन काव्य के प्रेत । कबि को दीन न चहै बिदाई। पूछ केशव की कविताई । उड़ान केसवदास। 'केसव अर्थ गंभीर को' की' चर्चा अब कोई नहीं करता । 'प्रेत' शब्द का क्या प्रासंगिक अर्थ है ? केशव के संबंध में प्रचलित किंवदंती का स्मरण कीजिए। कहते हैं कि जो सुख-भोग केशव और उनकी मंडली तुंगारण्य के बीच ओड़छे में कर रही थी वह परलोक में भी खंडित न हो इस विचार से उन्होंने प्रेत यज्ञ कराया। सबके सब प्रेत हो गए । केशव प्रेतयोनि में जिस कष्ट का अनुभव कर रहे थे उसे उन्होंने तुलसीदास से निवेदित किया और उनके आदेशानुसार अपनी रामचंद्रचंद्रिका का पाठ कर मुक्त हुए । औरों की मुक्ति के संबंध में किंवदंती मौन है। बस, केशव 'कठिन काव्य के प्रेत' हो गए। 'एक भए प्रेत एक मीजि मारे हाथी हैं' में भी यही जनश्रुति मुखर है। इसका अर्थ यही है कि केशव का काव्य कठिन है। कठिन काव्य पहले समझ में आए तंब न ! बस, 'कबि को दीन न चहै बिदाई, पूछ केसव की कबिताई' । केशव के कठिन काव्य को पहले स्मरण कौन करे और स्मरण करे भी तो जो सुनेगा उसे पहले अर्थ लगेगा तभी तो कार्य सधेगा । कवि अर्थात् भाट कबिताई सुना देगा, वह कोई टीकाकार या महाभाष्यकार तो है नहीं कि उसका अर्थ भी श्रोता को बतलाए । अर्थ लगता नहीं तो अर्थ हाथ कैसे लगे। इस कठिनाई का अर्थ यह भी लगामा जाने लगा कि उनकी कविता में 'रस' नहीं. 'सहृदयता' नहीं। प्राचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उन्हें हृदयहीन क्या लिख दिया, वे बेचारे रसिकों, सहृदयों, कवियों सबकी मंडली से खारिज किए जाने लगे। केशव परंपरा से इतने अभिभूत थे कि वे अपने हृदय का उपयोग उस अवसर पर नहीं कर पाते थे जिस अवसर पर शुक्लजी के विचार से हृदय का योग अनि- वार्य रूप से होना चाहिए । प्रकृति के प्रति उनके हृदय में वह राग नहीं था जो होना कवि के लिए अपेक्षित है । पर यह तो हिंदी के सभी कवियों के लिए है।