पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/६९

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द्वितीय प्रभाव ६६ व्रजनाथ, तुम किसके हाथ बिके हो ? (तुमने किस दूसरी नायिका से प्रेम कर लिया है ? )। अलंकार-एकावली ( चतुर्थ चरण में ) । सूचना-'प्रौढ़िरूढ़' शब्द का प्रयोग अभी तक केवल केशव की ही कविता में मिला है। इसका प्रयोग 'रामचंद्रचंद्रिका' में भी किया गया है- प्रौढ़िरूढिकोस मूढ़ गूढ़ गेह में गयो ।-रामचंद्रचंद्रिका ( १६।२४) । अथ धृष्ट-लक्षण-( दोहा ) (४२) लाज न गारिहु मार की, छाँडि दई सब त्रास । देख्यौ दोष न मानही, धष्ट सु कहिये तास ।१४। शब्दार्थ -लाज = गाली पाने और मार खाने की भी लज्जा नहीं है। त्रास - डर । देख्यौ० = दोष करते हुए पाए जाने पर भी अपने दोष को स्वीकार नहीं करता। अथ प्रच्छन्न धृष्ट, यथा-(दोहा) (४३) नेह-भरे लै लै भाजत भाजन कौन गर्ने दधि दूध मठाए । गारि दिये त हँसै बरजें घर आवत हैं जनु बोलि पठाए । लाज को और कहा कहौं केसव जे सुनिये ते सबै गुन ठाए । मामी पियै इनकी मेरी माइ को हैं हरि आठहुँ गाँठ अठाए ।१५॥ शब्दार्थ-नेह = स्नेह अर्थात् मक्खन, घी आदि। भाजन = पात्र । मठाए = मट्ठवाले (भाजन)। बरजें = मना करने पर भी । बोलि पठाए = बुला भेजे गए । जे सुनिये ते = जो गुण सुने जाते थे वे सब । ठाए - हैं । मामी पीना (मुहावरा) जिम्मेदारी के साथ इनकार करना, मुकर जाना। मामी = पानी (किसी कार्य के संबंध में पवित्र पानी को हाथ में लेना या पीना उस कार्य के अस्वीकार के लिए प्रमाण होता है) । आठहुँ गाँठ = सब प्रकार से ( प्रागे छंद १६ में आठ गाँठों का उल्लेख है । ), भली भाँति । अठाए - शरारती । आठ गाँठ अठाई = छैटा हुआ धूर्त । भावार्थ-( नायिका की उक्ति अंतरंग सखी से ) कृष्ण मेरे मवखन, घी आदि से भरे वर्तन ले लेकर भाग जाते हैं, दही, दूध और मट्ट के बर्तनों की तो गिनती ही नहीं। वे गाली देने पर हैले है और मना करने पर भी घर में इस प्रकार पाते हैं, मानो जुला भेजे गए हो। लाज की और बाते क्या कहूँ, इनके जितने गुण (अवगुण) सुने जाते थे वे सबके सब इन में हैं । हे सखी, -मानही-मानई । कहिये-केसवदास । १५–मठाए-मिठाए। ते सबै०-गुन ते सब ठाए। मामी-मीमी । अठाए- -