पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

50 रसिकप्रिया शब्दार्थ-मनुहारि किये = चिरौरी करने पर । पलिका = पलंग । भय- भीने भयभीत । कोरहि-कोड़ में, गोद में। कोरिक करोड़, बहुत अधिक । उससे निकलने पर। भावार्थ- (सखी की उक्ति सखी से) हे सखी उस ( नायिका ) ने ( नायक द्वारा ) पैरों पड़ने और चिरौरी करने पर (किसी प्रकार) भयभीत होकर पलंग पर पर रखा । (पुनः) करोड़ों कसमें खाने पर (किसी प्रकार) गोद में सो गई । तब साहस करके उन्होंने (नायक ने) मुख से मुख छुलाया । क्षण मात्र के इस सुख में उन्होंने सभी सुख प्राप्त कर लिए। उस ( नायिका ) के एक ही उछ्वास के निकलने से और सभी सुगंधे बिदा हो गई । ( दब गई- उसके मुख की सुवास के सर्वोत्कृष्ट होने के कारण ) । अलंकार-हेतु। मुग्धा के सुख-लक्षण-( दोहा ) (७४) मुग्धा सुख्ख करै नहीं, सपनेहूँ सिख मानि । छल-बल कीनें होति है, सुख-सोभा की हानि !२८॥ शब्दार्थ- कीनें = करने से । -( कबित्त ) (७५) सुख दै सखीनि बीच दै कै सौहैं द्याइ के, खवाइ कळू स्वाइ बस कीनी बरुबसु है। कोमल मृनालिका सी मल्लिका की मालिका सी, बालिका जु डारी मीडि मानुसु कि पसु है। जानै न बिभात भयो केसव सुने को बात, देखौ आनि गात जात भयो किधी असु है। चित्र सी जु राखी वह चित्रिनी बिचित्र यह, देखौ धौं नए रसिक या में कौन रसु है ।२६। शब्दार्थ-सुख दै = सुख की सामग्रियां जुटाकर । बीच दै= मध्यस्थ बनाकर । सौंह = शपथ । खवाइ कछू =कुछ मादक द्रव्य खिलाकर । बरु- बसु = बल से, जबरन । मृनालिका = कमलनाल । मल्लिका - बेला । मीडि = मसलकर । मानुसु = मनुष्य । बिभात प्रभात, प्रातःकाल । पानि = आकर । गात = ( गात्र ) शरीर । असु-प्राण । धौं = क्यों नहीं। रसु = आनंद। यथा- २८-सिख-सुख । २६-द्याइ-खाइ। कि-के । वह-यह । यह-प्रति; गति । देखो-कहि; कहो