पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/८४

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८५. = तृतीय प्रभाव भावार्थ-हे मित्र, विचित्रसुरता नायिका वह है जिसकी रति विचित्र हो । कवियों के लिए भी इसका वर्णन कठिन है, पर इसका चरित्र सुनने से आनंद. दायक होता है। यथा-( कबित्त ) (८६) केसौदास सबिलास मंदहासजुत अवि- लोकनि अलापनि को आनँद अपार है। बहिरति सात पुनि अंतरति सात पुनि, रति विपरीतनि को बिबिध बिचार है। छूटि जाति लाज तहाँ भूषन सुदेस केस, टूटि जात हार सब मिटत सिँगार है। कूजि कूजि उठे रतिकूजतनि सुनि खग, सोई तौ सुरत सखी और बिवहार है।४।। शब्दार्थ-सबिलास=विलासपूर्वक । अलाप = बोली, वाणी । बहिरति बहिर्रति, बाह्य रति ( इनका उल्लेख आगे है ) । अंतरति = अंतर्रति, प्रांतर- आभ्यंतर रति । बिपरीत रति-( नायक नायिका के ) विपर्यय से रतिक्रीड़ा। सुदेस = सुंदर । रतिकूजतनि = कामक्रीड़ा की ध्वनियों को ( सुनकर ) । कूजि कूजि० =उस ध्वनि को सुनकर पक्षी धोखा खाकर उसे पक्षी का कूजना समझकर उस ध्वनि के प्रत्युत्तर में स्वयम् कूजने लगते हैं। और बिवहार है = और ( रति) तो व्यावहारिक अर्थात् साधारण है, मामूली है । अथ सात बहिर्रति-वर्णन-( दोहा ) [sv] आलिंगन, चुंबन, परस, मर्दन नख-रद-दान । अधरपान सो जानिय, बहिरति सात सुजान |४१॥ शब्दार्थ-परसस्पर्श । नख-रद-दान = नखदान ( नखक्षत ) और रद ( दंत ) दान ( दंतक्षत)। अथ सात पंतररति-वर्णन--(दोहा) [55] थिति, तिर्यक, सनमुख, विमुख, अध, ऊरध, उत्तान । सात अंतरति समुझियै केसवराइ सुजान ।४२। शब्दार्थ-अंतरति = संभोग के आसन । थिति = स्थित ( खड़े)। तिर्यक = तिरछे ( करवट)। बिमुख = उलटे । अध= अधोमुख । ऊरध = ऊर्ध्वमुख । उतान = उताने, चित्त । ४०-पुनि-सुभ, अरु. भांति । सात-पांच । अंतरति-अंतरित । पुनि- सुनि । तहाँ-जहाँ। ४१-जानिय-समुझिये। ४२-समुझिय-जानिये । उत्तान-उभान । केसवराइ-केसव सकल ।