पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/८५

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८६ रसिकप्रिया सूचना-इसके अनंतर निम्नलिखित दोहा छपी प्रति में मिलता है। यह खंडित प्रति में भी है, पर पूरी हस्तलिखित और लीथोवाली प्रतियों में नहीं है सोरहई सिंगार सब, सोरह सुरत समान । बुधि बिबेक बल समुझिय, केसव सकल सुजान || अथ षोडश शृंगार-वरणन-( कबित्त ) (5€) प्रथम सकल सुचिमंजन अमल बास, जावक सुदेश केस-पास को सुधारिबो । अंगराग भूषन बिबिध मुखबास राग, कन्जल-कलित लोल लोचन निहारिबो। बोलनि हँसनि मृदु चातुरी चितौनि चारु, पलपल प्रति पतिव्रत प्रतिपारिबो। केसौदास सबिलास करहु कुँवरि राधे, इहि विधि सोरह सिगारनि सिँगारिबो ।४३। शब्दार्थ-सुचि मंजन = पवित्रता से स्नान करना । अमल बास = स्वच्छ वस्त्र पहनना । जावक = महावर । सुदेस = बढ़िया। केस-पास = केशों का समूह सँवारना, केशों को भली भाँति बाँधना । अंगराग = शरीर की शोभा के लिए लेप आदि का प्रयोग [ ये पांच प्रकार के कहे गए हैं-सिंदूर, खोर या मस्तक में तिलक, चिबुक में गोदना, मेंहदी और अरगजा या चंदन का लेप ] भूषन बिबिध = अनेक प्रकार के गहने [ ये भी दो प्रकार के होते हैं-मरिण-सोने के और पुष्पों के ] । मुखबास राग-मुखबास और मुख राग । मुखराग दो प्रकार के होते हैं-दंतमंजन और एला-लवंगादि का चर्वण । मुखराग = अधरों में रंग लगाना या तांबूल से उन्हें लाल करना । कज्जल- कलित = काजल से युक्त । लोल%Dचंचल । निहारिबो = देखना । प्रति = प्रतिपल, प्रतिक्षण | प्रतिपारिबो= [प्रतिपालन ] पालन करना। सूचना-हस्तलिखित ( पूरी ) प्रति में और लीथोवाली प्रति में यह छंद नहीं है। अथ सुरतांत-( सवैया ) (१०) सुंदरता पय पावक जावक पीक हिये नखचंद नए हैं। चंदन चित्र सुधा, विष अंजन, टूटि सबै मनिहार गए हैं। केसव नैननि नींदमई मदिरा मद घूमत मोहमए हैं। केलि कै नागर नागरी प्रात उजागर सागर-भेष भए हैं।४४॥ ४३-मंजन-मज्जन । सुधारिबो-सम्हारिबो। निहारिबो-बिहारिबो । मद्- चित् । चातुरी-चसनि । प्रतिपारिबो-परिपारिबो। इहि-एही । ४४-नागर- नागरि नागर। पल पल 1