पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/११४

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ग्य का वक्ष्य असंग-प्राप्त साधारण असाधारण सभी वस्तुओं का वर्णन कृवि का कर्तव्य है। काव्य-क्षेत्र अजायबखाना या नुमाइशगाह नहीं है। जो सच्चा कवि है उसके द्वारा अकिंत साधारण वस्तुएँ भी मन को लीन करनेवाली होती हैं। साधारण के बीच में यथास्थान असाधारण की योजना करना सहृद्य और कलाकुशल कवि का काम है। साधारण असाधारण अनेक वस्तुओं के मेल से एक विस्तृत पूर्ण चित्र संघटित करनेवाले ही कवि कहे जाने के अधिकारी हैं। साधारण के बीच में ही असाधारण की प्रकृत अभिव्यक्ति हो सकती है। साधारण से ही असाधारण की सत्ता है, केवल असाधारण ही असाधारण साधारण हो जाता है। अतः केवल वस्तु के असाधारणत्व या व्यंजन-प्रणाली के असाधारणत्व में ही काव्य समझ बैठना अच्छी समझदारी नहीं। इसी प्रकार की एकांगदर्शिता के कारण कवि के कर्म क्षेत्र से सहृदयता धक्के देकर निकाल दी गई और कवि का कर्मक्षेत्र जीवन के कर्मक्षेत्र से काटा जाने लगा। फालतू कल्पना और फालतू बुद्धि-जो संसार के किसी काम की न ठहरी–कविता के मैदान में दुखत जमाने लगीं। जो कल्पना घर के प्राणियों तक के दुःख को इस रूप में न उपस्थित कर सकी कि हृदय द्रवीभूत होने का कुछ अभ्यास प्राप्त करता, उसे उस क्षेत्र में घुसने की राह क्या सुल खेलने के लिये मैदान मिल गया, जिसमें विश्व की अनुभूति को प्रत्यक्ष करनेवाली महती कल्पनाएँ अपना विकास दिखाती - माती थीं। एक कविजी किसी राजा के सुयश की फैलती हुई सफेदी से घबराकर कहते हैं १ [देखिए 'काव्य में प्राकृतिक दृश्य,' चिंतामणि दुसरा भाग,