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रस-मीमांसा

|| Y इस-मीमांसा अनुभाव होता है या नहीं । श्रृंगार रस का नीचे का प्रसिद्ध “उदाहरण लीजिए- शुन्यं वासगृहं विलोक्य शयनादुत्थाय किञ्चिच्छनै- निद्रव्याजमुपागतस्य सुचिरं निर्वण्र्य पत्युमुखम् । विसब्धं परिचुम्म्य अतिपुलकोमालोक्य गंडस्थल, लजानम्रमुखी प्रियेण सता घाला चिरं चुम्चिता ।। -[अमम् शतक, ८२ ।] अर्थात् नवोढ़ा-नायिका ने वासगृह को शून्य देखकर शय्या से धीरे धीरे कुछ उठकर निद्रा के बहाने लेटे हुए पति के मुख को बड़ी देर तक देखा । कि कहीं जागते तो नहीं हैं। फिर ( सोता हुआ समझकर ) विश्वासपूर्वक चुंबन किया ; पर उसके गंडस्थल को ( हुर्ष से ) पुलकित देखकर उस बाला ने लज्जा से मुँह नीचा कर लिया और प्रिय ने हँसते हुए उसका बहुत देर तक चुंबन किया। | इस उदाहरण में नायक को 'पुलक' तो हर्ष का सूचक है, पर चुंबन शुद्ध रति भाव का अनुभव है। इससे सिद्ध हुआ कि रति भाव की, संचारियों से भिन्न, अपनी अलग प्रवृत्ति भी होती है। स्पर्श, चुंबन, आलिंगन इत्यादि व्यक्तिगत रति भाव की बँधी हुई प्रवृत्तियाँ हैं। इसी प्रकार उसका लक्ष्य भी अलग कहा जा सकता है। उसका लक्ष्य होता है विषय या आलंबन के ‘स्वरूप के अनुरूप उसके साथ संयोग । किसी भाव की औरों से अलग ‘प्रवृत्ति' और 'लक्ष्य' का पता पाना उसकी सत्ता का पता पाना है। मानसिक अवस्था के विश्लेषण द्वारा भाव के स्वरूप लक्षण (Static ) के स्थान पर उस अवस्था के साथ संश्लिष्ट च्यापार आदि के निर्देश द्वारा तटस्थ लक्षण (Dynamic ) की