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रस-मीमांसा

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१६ ए-मीमांसा में माने गए हैं। अतः रस-निष्पत्ति के लिये आश्रय द्वारा व्यंजित प्रधान भाव सहानुभूत्यात्मक नहीं रखा गया। साधारणीकृत भाव का फिर रस-रूप में साधारणीकरण ठीक नहीं समझा गया। उपर्युक्त विवेचन का संक्षिप्त परिणाम यह निकला कि जिन्हें साहित्य में भाव कहते हैं उनकी तीन दशाएँ मिलती हैं-भाव दशा, स्थायी दशा और शीलदशा । नीचे तीनों दशाओं का चक्र दिया जाता है। एक अवसर पर एक अनेक अवसरॉपर एक अनेक अवसरों पर अनेक आलंबन के प्रति आलंबन के प्रति झालंवनों के प्रति भावदशा स्थायीदशा शीलदशा राग रति स्नेहशीलता, रसिकता, लोभ, तृष्णा, लंपटता इस ( अनभिधेय ) हँसोड़पन, विनोदशीलता उत्साह वीरता, तत्परता आश्चर्य ( अनभिधेय ) भौचक्कापन शोक संताप खिन्नता क्रोध क्रोधशीलता, उग्रता, चिड़चिड़ापन | भय आशंका भीरता जुगुप्सा विरति तुनकमिजाजी इस तालिका में ‘शीलदशाओं' के नाम स्थायी दशाओं से भिन्न देखकर यह न समझना चाहिए कि नाम-भेद सर्वत्र ही बैर