पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१९८
रस-मीमांसा

________________

1६६ रस-मीमांसा पर आश्रय किसी व्यक्ति के प्रति ईर्षा व्यंजित करके श्रोता या दर्शक को भी उक्त व्यक्ति के प्रति रस-रूप में ईर्षा का अनुभव नहीं करा सकता। प्रधान भावों के संबंध में ये मोटी मोटी बातें कहकर अब संचारियों की ओर आता हूँ। संचारी। पाश्चात्य भाव-वेत्ता शैड के भाव-निरूपण के अनुसार प्रत्येक भाव एक प्रकार का व्यवस्था-चक्र है जिसके साथ शेप भावों का संबंध भी अव्यक्त रूप में लगा रहता है । क्रोध, भय, आनंद और शोक जो मूल भाव कहे गए हैं उनमें से प्रत्येक का संबंध वाकी औरों से रहता है । क्रोध को ही लीजिए । उसके लक्ष्य की पूर्ति न होने पर शोक या विषाद, पूर्ति हो जाने पर आनंद, कठिनाइयाँ दिखाई देने पर पूर्ति न होने की आशंका तक हो सकती है । भूतों के पंच-पंचीकरण ? की सी व्यवस्था समझिए । भारतीय साहित्यिकों की स्थायो-संचारी-व्यवस्था भी संबंधव्यवस्था ही है, पर विशेष प्रकार की । वह अधिकार-व्यवस्था १ [ वेदांतसार के अनुसार प्रत्येक स्थूल भूत में शेष चार भूतों के अंश भी वर्तमान रहते हैं। भूत की यह स्थूल स्थिति पंचीकरण द्वारा होती हैं जो इस प्रकार होता है। पाँच भूतों को पहले दो बराबर बराबर भागों में विभक्त किया, फिर प्रत्येक के प्रयाधं को चार चार भागों में बाँटा । फिर इन सब बीस भाग को लेकर अलग रखा। अंत में एक एक भूत के द्वितीयाधं में इन चीन भागों में से चार चार भाग फिर से इस प्रकार रखे कि जिस भूत का द्वितीयो हो उसके अतिरिक्त शेष चार भुत का एक एक भाग उसमें आ जाय । -हिंदी शब्द-सागर, ‘पंचीकरण' के अंतर्गत । ]