पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२१६

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भावों का वर्गीकरण २०। प्रकट होते हुए कहे जायँ तो उनसे क्रोध की पुष्टि न होगी । यही बात युद्धोत्साह के बीच में त्रास आदि के होने से होगी । अतः ये मनोविकार क्रोध र उत्साह के संचारी नहीं हो सकते । कारण यह किं क्रोध के बीच में यदि शंका या त्रास हो जाय तो जितने काल तक शंका या त्रास की स्थिति रहेंगी उतने काल तक क्रोध का अस्तित्व न माना जायगा । सारांश यह कि किसी भाव को पुष्ट करनेवाला मनोविकार ही संचारी हो सकता है और पुष्ट करनेवाला मनोविकार वही होगा जो भाव के लक्ष्य र प्रवृत्ति से हटानेवाला न होगा। एक बार इस बात का फिर स्मरण कर लेना चाहिए कि स्थायी दशा को प्राप्त होने पर भी भाव का मूल स्वरूप बीच बीच। में अवसर या उत्तेजन पाकर उदित हुआ करता है। स्थायी दशा के बीच बीच में मूल स्वरूप के इस स्थिति-काल को हम भाव-दशा भी कहेंगे । जैसे, नायक के प्रति राग के रति-रूप में स्थायी हो जाने पर जिस प्रकार हर्ष, अमर्ष आदि संचारी भाव प्रकट होंगे वैसे ही कभी कभी नायक के मिलने पर भाव का मूल स्वरूप भी अपनी . निज की प्रवृत्ति (आलिंगन,चुंबन आदि) के सहित प्रकट हुआ करेगा। इसी प्रकार जिससे बैर होगा उस पर समय समय पर क्रोध भी हुआ करेगा। भाव के मूल स्वरूप के इस उदयकाल में केवल अविरुद्ध संचारी ही प्रकट हो सकते हैं। विरुद्ध संचारी जब प्रकट होंगे तब अकेले, भाव के मूल स्वरूप के साथ कभी नहीं । अतः जहाँ विरुद्ध संचारी हों वहाँ तो चट,बिना किसी सोच-विचार के,स्थायी दशा समझ लेनी चाहिए। पर स्थायी दशा ऐसी भी होती हैं। जिसमें भाव का मूल स्वरूप स्फुट नहीं होता, केवल अविरुद्ध संचारी के अनुभाव आदि द्वारा ही भाव की भी व्यंजना हो जाती है । जैसे, नायक के दर्शन से पुलक होना मात्र ही यदि कह दिया