पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भाव का वरण उपर्युक्त विवेचन से यह परिणाम निकला कि 'भावों के स्वरूप के भीतर ही वह वस्तु है जिसके अनुसार प्रधान और संचार का विभाग हो जाता है। वह वस्तु है आलंबन । आलंबेन या तो सामान्य होता है या विशेष । जो सामान्य आलंबन होगा उसके प्रति मनुष्य मात्र का कम से कम सहृदय मात्र का वही भाव होगा जो आश्रय का है। जो विशेष आलंबन होगा उसके प्रति श्रोता या दर्शक स्वभावतः उसी भाव का अनुभव न करेगा जिसे व्यंजित करता हुआ आश्रय दिखाया गया है-दूसरे भाव का अनुभव वह कर सकता है । इस विभेद को ध्यान में रखकर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रधान शवों की गिनती में वे ही भाव रखे गए हैं जिनके आलंबन ‘सामान्य' हो सकते हैं। शेष भाव या मनोवेग संचारियों की श्रेणी में डाले गए हैं क्योंकि उनमें से किसी किसी के स्वतंत्र विषय होंगे भी तो भी होता या दर्शक. का ध्यान उनकी ओर प्रवृत्त नहीं रहेगा ! गिनाए हुए संचारियों की सूची से ही पता चल जाता है। कि उनका क्षेत्र बहुत व्यापक है। संचारी के अंतर्गत 'भाव' के पास तक पहुँचनेवाले अर्थात् स्वतंत्र विषययुक्त और लक्ष्ययुक्त मनोविकार और मन के क्षणिक वेग ही नहीं बल्कि शारीरिक और मानसिक अवस्थाएँ तथा स्मरण, विर्तक आदि अंतःकरण की और वृत्तियाँ भी आ गई हैं