पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२२२

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भावों का वर्गीकरण स्वतंत्र विषयवाले भाव इनमें तीन मनोविकार ही ऐसे हैं जिनके विषय प्रधान भाव के झालंबन से स्वतंत्र हो सकते हैं-गर्व, लज्जा और असूया। इनके विषयों का विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि विपय या आलंबन 'भाव' का कारण नहीं है। जैसे, किसी के साथ हम बुराई कर चुके रहते हैं तो उसे सामने पाकर हम लजित होते हैं । अतः बुराई तो हुई हमारी लज्जा का कारण; जिसे सामने पाकर हम लजित होते हैं वह हुआ विपय । जिससे हम ईष्य रखते हैं वह हैं विपय ; उसके गुण, धन, वैभव आदि हैं कारण । जिस पर हम गर्व प्रकट करते हैं वह हुआ विषय और हमारा गुण, वैभव, शक्ति आदि कारण । रति, क्रोध अादि प्रधान भावों के आलंबनों के संबंध में भी यहीं समझना चाहिए। जैसे, नायिका आलंबन, और उसका रूप, गुण आदि कारण, अनिष्टकारी व्यक्ति आलंबन और अनिष्ट कारण, मृत या पीड़ित व्यक्ति आलेवन और उसकी मृत्यु, पीड़ा आदि कारण कहे जायेंगे। इसी प्रकार और भी समझिए । कारण आचेय होता है और विषय आश्रय-आधार । लज्जा, ईष्र्या और गर्व के यद्यपि स्वतंत्र विषय होते हैं पर उनकी और उतना ध्यान नहीं रहता जितना कारणों की ओर रहता हैं । 'आश्रय' का ध्यान तो कुछ रहता भी हैं, पर श्रोता या दर्शक का ध्यान कुछ भी नहीं रहता। अतः स्वतंत्र विषय रखने पर भी ये आलंबन प्रधान नहीं हैं। इनके विषय आलंबन-पद प्राप्त नहीं होते। आलंबन वही विषय कहा जा सकता है जिसके प्रत्यय का बोध प्रधान होकर बना रहे। अतः आलंबन प्रधान भावों के ही विषय को कह सकते हैं। गर्व लज्जा के संबंध में यह बात ध्यान देने की है।