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रस-मीमांसा

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२ १० रस-मीमांसा भाव के कारण होते हैं यह शंका उठाई जा सकती है कि ज जिसका कारण है वह उसके पीछे कैसे उत्पन्न हो सकता है । अमर्ष, त्रास, इर्ष और बिषाद चारों के संबंध में ऊपर ही । यह कह दिया गया कि ये क्रोध, भय, राग और शोक के हैं। अवयव हैं उसी में इसका समाधान मौजूद है। अंगी का कोई अंग प्रधान या लक्षक अंग के पहले प्रकट हो सकता है। सारांश यह, वि, संचारी रूप में अमर्ष, त्रास, हर्ष और बिषाद का क्रोध आदि के साथ कार्य-कारण-संबंध नहीं है अंगगिभाव-संबंध है । साहित्य के आचार्यों ने क्रोध, राग, भय और शोक के इन आलंबन-निरपेक्ष शुद्ध वेग-रूप अवयवों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी देख इनको अलग करके संचारियों में रख लिया । भावों और उनके इन अवयवों के अनुभवों को चाहें तो हम अलग कर सकते हैं। उन अवयवों के उदय तक केवल सात्विक अनुभाव रहेंगे ; भाव का उदय हो जाने पर कायिक अनुभाब होंगे । उक्त चारों वेगों के जो स्वरूप ग्रंथों में बताए गए हैं उनसे भी इस बात का पूरा संकेत मिल जाता है कि वे क्रोध, भय, राग और शोक के ही अवयव हैं। अमर्ष में नेत्र-राग, शि:कॅप, भ्रसंग और तर्जन का होना : त्रास में कंपादि होना : हर्ष में अशु, पुलक आदि का होना और विषाद में निःश्वास, उच्छवास आदि होना कहा गया है। ये सव व्यापार क्रमशः क्रोध, भय, राग और शोक के अनुभावों में पाए जायेंगे। संचारियों के जो बाह्य चिह्न साहित्य-ग्रंथों में बताए गए हैं वे एक प्रकार से उनके अनुभाव ही हैं। १ [इर्षत्विष्टवातेनः प्रसादोऽश्रुगदादिकरः |- साष्ट्रिय ० ३ १६५] ३ [निःश्वासोच्छ्वासत्तापसहायान्वैपण दिकृत् । साहित्य० ३.१५७]