पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२३०

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भावों का वर्गीकरण २१५ दोनों के उदाहरण बहुत ही स्पष्ट दिए हैं। मारीच को मार आश्रम की ओर लौटते हुए रामचंद्रजी इस प्रकार शंका प्रकट करते हैं दुःत्रिता खरघातेन राक्षसाः पिशिताशनाः । तैः ममता निइहा घारैभविष्यति, न संशयः ॥ [ वाल्मीकीय रामायण, सः ५८, श्लोक १६ । ] आश्रम में जानकी को न पाकर रामचंद्रजी इस प्रकार त्रित करते हैं हृता मृता वा नष्टा वा भक्षिता वा भविष्यति । निलीन।ऽप्यथवा भीरुथवा वनमाश्रिता ।। गता विचेतुं पुष्पाणि, फलान्यपि त्र वा पुनः । अथवा पद्मिनी याता, जलायँ वा नई गता ।। [वी, सर्ग ६०, श्लोक ८६ ।] गोस्वामीजी ने राम के वनवास की अवधि बीतने पर भरत का वितर्क दिखाया है। वह संचारी का बहुत अच्छा उदाहरण है, राम के प्रेम में भरत मग्न हैं। उनके नयन-जलजात भी स्रवते हैं, उन्हें सगुन जानकर हर्ष भी होता है और वे इस प्रकार वितर्क भी करते हैं-- *२. कीन नाथ नहि आए । जानि कुटिल प्रभु मोहि शिराए । अादि [रामचरितमानस, सप्तम सोपान, १ ।] अन्य अंतःकरण-वृत्तियों में जिस प्रकार भय-लेश-युक्त ऊहा ‘शंका' रखी गई है उसी प्रकार हर्ष-लेश-युक्त ऊहा 'आशा' र विषाद-लेश-युक्त ऊहा नैराश्य को भी रख सकते हैं । जो ३३ संचारी कहे गए हैं वे उपलक्षण मात्र हैं, संचारो और