पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२३६

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भावों का वर्गीकरण ३३ । और करुणा दोनों में रहता है। उसी अभिलाष की पूर्ति के साधन में मृदुता योग देती है। दुःख मैं किसी की सहायता हमसे नहीं बन पड़ती तो हम मृदु वचनों से ही उसे सांत्वना देने का प्रयत्न करते हैं। जिस प्रकार प्रकृतिगत उग्रता में लोक के अनिष्ट की ओर प्रवृत्ति झलकती है उसी प्रकार ‘मृदुलता' में इष्टापूर्त की प्रवृत्ति । यह लोकरंजक प्रवृत्ति जिसमें होती है। उसका स्वभाव मृदुल कहा जाता है। राम के ‘मृदुल स्वभाव' का गौ• तुलसीदासजी ने मुग्ध होकर स्थान स्थान पर उल्लेख किया है। भरतजी राम के आगमन के संबंध में तर्क-वितर्क करते हुए अंत में अपने मन को यहीं समझकर ढाढ़स बंधाते हैं कि जन-अवगुने प्रभु मान न काऊ। दीनबंधु अति मृदुल सुभाऊ ।। [ रामचरितमानस, सप्तम सोपान, १ । ] ‘मृदुलता’ और ‘उग्रता दोनों का चित्रण गोस्वामीजी ने परशुराम और लक्ष्मण के संवाद के प्रसंग में साथ ही किया है। लक्ष्मणजी के उग्र भाषण पर उत्तेजित परशुराम वीच बीच में राम के मृदु वचनों से ठंढे पड़ते दिखाए गए हैं। | ‘उग्रता' के साथ ‘निष्ठुरता' या ‘निर्दयता के मेल से ‘क्रूरता' का आविर्भाव होता है । यद्यपि ‘निर्दयता’ उम्रता से अलग भी देखी जाती है। पर वहाँ निर्दयता की ओर अंतःकरण की प्रवृत्ति नहीं होतीं । किसी दीन अनाथ का सर्वस्व नीलाम कराते हुए बनिये में कुछ भी उग्रता नहीं होती। वह बहुत ही भलमनसाहत, ईमानदारी और नम्रता दिखाता हुआ तथा धर्म और न्याय की बातें कहता हुआ पाया जाता है। वह उस दीन अनाथ का अनिष्ट नहीं चाहता बल्कि रुपये के लोभ के आगे उसके इष्ट-अनिष्ट, भले-बुरे या मरने-जीने की ओर कुछ