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रस-मीमांसा

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२२६ रस-मीमांसा हो सकती है। जिस प्रकार राग की भावदशा में लोग कभी कभी थोड़ी देर के लिये उन्मत्त प्रलाप आदि करते हैं उसी प्रकार उसकी रति नामक स्थायी दशा में भी बहुत दिनों के लिये या सब दिन के लिये पागल हो जाते हैं। हमारे बंगाली भाइयों के प्रेम का तो पागलपन एक बड़ा भारी अंग है। अतः प्रेम में उन्माद के अधिक वर्णन को यदि हम ‘गौड़ी पद्धति' कहना चाहें तो कह सकते हैं। गिरीश घोष के नाटकों में शायद ही कुछ नाटक ऐसे निकलें जिनमें कोई उन्मादिनी' न हो ! र भावे के कारण भी उन्माद् होता है। जिस प्रकार क्रोधोन्मत्त होकर लोग बहुत सी वेठिकाने की बातें कर बैठते हैं उसी प्रकार वैर के प्रतिशोध के लिये भी बरसों पागल होकर घूमते देखे जाते हैं। किसी के शोक में पागल होना तो प्रसिद्ध ही है। जुगुप्सा या विरति से भी उन्माद या उन्माद की सी दशा हो सकती है। शेक्सपियर का हैमलेट' इसका उदाहरण है। अपने चचा और माता के कृत्य से उसे जो विरक्ति हुई उसने उसकी दुशा उन्मत्त की सी कर दी। | ‘साहित्यदर्पण' के लक्षण के अनुसार संतोष या तुष्टि ही का नाम ‘धृति' प्रतीत होता है। पर मैं स्पष्टता के लिये उसे 'धैर्य से भिन्न रखना ठीक नहीं समझता । नायक के गुणों में धैर्य का जो लक्षण कहा गया है उसी का ग्रहण कर संचारी का नाम मैंने 'धैर्य' ही रखा है। हिंदीवालों ने यही अर्थ ग्रहण किया हैं। बड़े बड़े विघ्न उपस्थित होने पर भी अपने व्यवसाय में १ [ चिंत्तसंमोह उन्मादः कामशोकभयादिभिः ।। अस्थानासदितगीतप्रलपनादिकृत् ॥ -वहो, ३-१६० । ]