पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२४६

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भाध का वर्गीकरण २३१ में ही होते हैं। अतः उनसे अंगग्लानि या थकावट उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार की थकावट संचारी के अंतर्गत कही जा सकती है। जैसे, बार बार के ऑलिगन, गर्जन-तर्जन या अस्त्रचालन इत्यादि से उत्पन्न थकावट । पर भाव की स्थायी दशा में जो प्रयत्न किए जायँगे जैसे, मार्ग चलना आदि उनसे उत्पन्न थकावट संचारी नहीं होगी, केवल उक्त प्रयत्न या व्यापार संचारी होंगे, जैसा कि श्रम के प्रसंग में कहा जा चुका है। अंगग्लानि या थकावट का स्वतंत्र ( जो किसी का संचारी न हो ) वर्णन भी सौकुमार्य आदि का सूचक होकर बहुत ही रोचक होता है। जैसे "नल को गए लक्खन ई लरिका,परिखौ पिय ! छाँइ घरोक हे ठाढ़े। पछि पसेउ बयारि करौं, अरु पार्दै पखारिहौं भूभुरि डाढ़े।” तुलसी रघुबीर प्रिया-श्रम जानिके, बैठि बिलंब ल कंटक काढ़े । खानको नाइ को नेह लख्यो, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाड़े ।। [ तुलसीकृत कवितावली, अयोध्याकांड, १२ ।] निद्रा और विबोध दोनों का संबंध यद्यपि चेतना की प्रवृत्ति और निवृत्ति से है पर वे अधिकतर शरीर-धर्म के रूप में ही दिखाई पड़ते हैं। इसी से उन्हें मानसिक अवस्था में न रखकर शारीरिक अवस्था में रखा है। प्रिय के ध्यान का सुख अनुभव करते करते नायिका का सो जाना और विरह-वेदना से नींद न आना क्रमशः निद्रा और विबोध के उदाहरण होंगे। यों ही सोते हुए मनुष्य का जाग पड़ना विबोध' संचारी न होगा। । [ मिलाइए आचार्य शुक्लकृत गोस्वामी तुलसीदास (सं०१६६६) पृष्ठ १४१ ।]