पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२४८

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भार्थों का वर्गीकरण वचन मात्र सुनकर, जिसकी आँख या केश देखकर ही हर्ष होता है उसके पूर्ण समागम के आनंद का क्या कहना है ? इसी प्रकार जिसका शोक होता है उसके किसी एक अंग, चेष्टा या गुण का स्मरण आने पर भी विषाद होता हैं और उसके कपड़ेलत्ते देखकर भी। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि प्रायः समस्त विषययुक्त संचारियों के विषय में ही होते हैं जो या तो उनके प्रधान भावों के आलंबन होते हैं या आनंबन-गत ( जैसे, नायिका की चेष्टा आदि ) उद्दीपन । आलंबन-बाह्य उद्दीपन केवल हर्ष और विषाद के विषय होते हैं जैसे, रति भाव का हुर्ष संचारी नायक के दर्शन स्पर्श से भी होता है, नायक का संवाद लाती हुई सखी आदि को देखकर भी तथा वन, उपवन, चंद्रिका आदि आलंबन-बाह्य विषयों को देखकर भी। पर इन आलंबन-बाह्य विषयों की ओर ध्यान प्रधान रूप में नहीं रहता । | साहित्य के ग्रंथों में संचारियों के बाह्य चिह्न भी बताए गए हैं। जो वास्तव में उनके अनुभाव ही हैं। जैसे, गर्व में तनकर खड़ा होना, अवज्ञा करना, अँगूठा आदि दिखाना ; अवहित्था में अनभीष्ट कार्य की ओर प्रवृत्ति दिखाना, दूसरी ओर देखना; चिंता में दीर्घ निश्वास लेना, सिर झुकाना, हाथ पर गाल रखना, माथा सुकोड़ना इत्यादि। इन् बाह्य चिह्नों का उपयोग पात्र या आश्रय के चित्रण में बहुत आवश्यक होता है जिसका विचार ‘विभाव' के अंतर्गत किया जायगा । आश्रय द्वारा शब्दव्यंजना न होने पर भी कभी कभी इनके द्वारा संचारी की व्यंजना हो जाती है । जैसे, किसी बात को सुनकर यदि कोई सिर झुकाकर और हाथ पर गाल रखकर बैठ जाय, उसके माथे पर बल आ जाय तो चट चिंता में पड़ना समझ लिया जा सकता है।