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रस-मीमांसा

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२३४ इस मौमांसा इन बाङ्य चिह्नों को भिन्न भिन्न भावों के अनुभावों के साथ मिलाने से इस बात का भी पता लगता है कि कौन कौन संचारी किन किन प्रधान भावों के अवयव होते हैं। संचारियों की सूची में पाँच ऐसे हैं जो किसी न किसी प्रधान भाव के अवयव भी हुआ करते हैं-अमर्ष, त्रास, विषाद, उपता और जड़ता । त्रास , भय का, विषाद शोक का, जड़ता आश्चर्य का तथा अमर्ष और उग्रता क्रोध के अवयव हैं। इन संचारियों के बाह्य चिह्न वे ही हैं जो क्रोध, भय, शोक और आश्चर्य के अनुभव कहे गए हैं--- जो भाव और वैग आदि नियत संचारियों में रखे गए हैं, वे कभी कभी प्रधान होकर भी आते हैं। यह प्रधानता दो प्रकार की हो सकती है(१) वह प्रधानता जो किसी नियत प्रधान भाव के स्फुट न होने से प्रतीत हो । (२) वह प्रधानता जो नियत प्रधान भाव के फुट होने पर भी उसके ऊपर प्राप्त हो । साहित्य के ग्रंथों में जो उदाहरण मिलते हैं वे प्रथम प्रकार की प्रधानता के। कोई भाव, वेग या मानसिक अवस्था इस प्रधानता को प्राप्त हो सकती है। यथा, एवंवादिनि देव पाश्र्वे पितुरधोमुखी । लीलकमलपत्राणि गणयामास पार्वती ।। | [ कुमारसंभव, छठौं सर्ग, ८४ ।] । “पिता के पास बैठी हुई पार्वती के सामने जब सप्तर्षियों ने शिव के साथ उसके विवाह की चर्चा चलाई तब वह सिर नीचा किए लीलाकमल के दल गिनने लगी । इस पद्य में बाह्य चिह्न के कथन द्वारा अवइित्था की ही प्रधान रूप से व्यंजना हुई है, पार्वती का रति भाव स्फुट नहीं किया गया है।