पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२५०

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भावों का वर्गीकरण ३३३ पर संचारियों में रखा हुआ कोई 'भाव' ऐसी प्रधानता भी प्राप्त कर सकता है कि कोई नियत प्रधान भाव उसका संचा होकर आए। जैसे, क्रोध असूया का संचार होकर आ सकता है और जुगुप्सा गर्व का । जब मंथरा ने राम की धात्री से उनके यौवराज्य का संवाद पाया तब वह अत्यंत ईष्र्या से उस कैलास-सदृश प्रासाद से उतरी, क्रोध से जलती हुई चली और सोती हुई कैकेयी के पास पहुँची ।। यहाँ पर मंथरा का क्रोध प्रधान भाव नहीं है, प्रधान भाव है असूया। उसके कारण उत्पन्न होने से क्रोध उसका संचारों ही कहा जा सकता है। राम प्रधानतः उसकी ईष्य के आलंबन हैं क्रोध के नहीं, क्योंकि क्रोध अनिष्टकारी के प्रति होता है, पर राम ने मंथरा का कभी कोई अनिष्ट नहीं किया था। | मंथरा की यह ईष्र्या विलक्षण है। इसका उद्घाटन आदिकवि की ही प्रतिभा का काम था। ईष्र्या समकक्ष के प्रति होती है जिसकी बराबरी करना चाहते हैं पर नहीं कर पाते । राजा से दरिद्रा दासी की क्या ईष्र्या ? इस ईष्य का प्रवर्तक कैकेयी के प्रति मंथरा का अनन्य रति भाव है । जिस पर हमारा अनन्य प्रेम होता है उसके प्रतिद्वंद्वी के गुण-मान की वृद्धि देख हमें भी १ [ धात्र्यास्तु वचनं श्रुत्वा कुन्जा क्षिप्रममर्षिता । कैलासशिखराकारप्रासादावरोभत ।। सा दह्यमाना झोघेन मय्यर अयानामेव कैकेयीमिदं वचनमब्रवीत् ।। -वाल्मीकीय रामायण, अयोध्याकांड, सप्तम सर्ग, १२-१३ ।]