पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भाव का वर्गीकरण २३७ कि एक भाव दूसरे भाव का संचारी होकर तभी आ सकता है जब । (१) उसका विषय वही हो जो प्रधान भाव का आलंबन है। और उसकी कोई अपनी गति या प्रवृत्ति न हो। (२) आलंबन से उसका विषय भिन्न हो उसकी कोई अपनी गति या प्रवृत्ति न हो, और वह स्वयं ऐसा हो कि प्रधान भाव के साथ उसका कोई रूपांतर लगा रहता हो । (३) उसकी गति या प्रवृत्ति वही हो जो प्रधान भाव की है। भार्यों को जो चक्र पहले दिया जा चुका है उसमें दो भाव ऐसे मिलते हैं जिनमें कोई अपनी गति या प्रवृत्ति नहीं होतीहास और आश्चर्य । अतः ये दोनों भाव श्रृंगार के संचारी होकर आ सकते हैं। हाल तो हर्ष के ही एक विशेष रूप का विकास हैं और हर्ष राग को भाव-दशा में बराबर रहता है। अतः नायक-नायिका चाहे एक दूसरे को कीचड़ में ढकेल कर हँसें चाहे किसी दूसरे व्यक्ति को देखकर हँसे उनकी हँसी रति भाव की प्रवृत्ति से हटानेवाली न होगी । इसी प्रकार नायिका का असाधारण रूप-सौंदर्य देख यदि नायक आश्चर्यचकित हो जाय तो भी रति की प्रवृत्ति में कोई बाधा नहीं पड़ेगी । पर आश्चर्य का विषय यदि रति भाव के आलंबन से भिन्न कोई दूसरा होगा तो वह आश्चर्य शृगार में संचारी न होगा क्योंकि वह ऐसा भाव नहीं हैं जिसका कोई रूप राग के साथ अंग-रूप से लगा रहता हो। स्थायी संचारी का प्रकृत रूप यही है जिसका वर्णन समाप्त हुआ और जो भावों का अधिष्ठान पात्र को मानने से निर्दिष्ट होता है । पर नाटक या काव्य को अधिष्ठान मानकर स्थायी संचारी का एक दूसरा अर्थ भी लिया जाता है। उसके